उनकी पहचान, रीति- रिवाज, परंपराएं, जीवन पद्धति अन्य धर्मावलंबियों से बिलकुल भिन्न है़ उन्हें पृथक धर्म कोड नहीं देना उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है़ 2011 की जनगणना में राज्य के 42 लाख सरना धर्मावलंबियों ने अपना यही धर्म अंकित कराया था़ यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये भूमि अधिग्रहण कानून- 2013 को राज्य सरकार हू-ब-हू लागू करे़ आदिवासी समाज इसमें छेड़छाड़ बरदाश्त नहीं करेगा़.
एकीकृत बिहार में स्थानीयता की परिभाषा 1982 में निर्गत पत्र के आधार पर मान्य था, तो राज्य गठन के बाद अंतिम सर्वे ऑफ रिकॉर्ड का मापदंड कैसे अप्रासंगिक हो गया? झारखंड का आदिवासी आज भी उसी मापदंड की मान्यता की मांग करता है़ ज्ञापन देने वालाें में अध्यक्ष अजय तिर्की, चंपा कुजूर, रवि खलखाी, संदीप तिर्की आदि शामिल थे़