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WHAT! झारखंड, बिहार में 2018 से फेल होनेवाले बच्चे रह जायेंगे उसी क्लास में

रांची : झारखंड और बिहार ने तैयारी पूरी कर ली है. अगले साल यानी वर्ष 2018 से यदि आपके बच्चे स्कूल में फेल हुए, तो उन्हें एक साल और उसी क्लास में पढ़ना होगा. हालांकि, पास होने का एक मौका मिलेगा, लेकिन इसमें भी फेल हुए, तो अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जायेगा. झारखंड, […]

रांची : झारखंड और बिहार ने तैयारी पूरी कर ली है. अगले साल यानी वर्ष 2018 से यदि आपके बच्चे स्कूल में फेल हुए, तो उन्हें एक साल और उसी क्लास में पढ़ना होगा. हालांकि, पास होने का एक मौका मिलेगा, लेकिन इसमें भी फेल हुए, तो अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जायेगा. झारखंड, बिहार के साथ-साथ 24 राज्यों ने ‘फेल नहीं करने की नीति’ खत्म करने का फैसला कर लिया है.

पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. जल्दी ही स्कूलों में बच्चों को ‘फेल नहीं करने की नीति’ को खत्म करने के लिए एक विधेयक संसद में पेश किया जायेगा. इस विधेयक को संसद से पारित कराने के बाद पूरे देश में बच्चों को फेल न करने की नीति को खत्म कर दिया जायेगा.

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एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कक्षा 9 में छात्रों की पढ़ाई छोड़ने की दर 20 फीसदी तक पहुंच जाने की वजह से देश के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम लाया गया था. इस अधिनियम के तहत अभी 8वीं कक्षा तक के बच्चे स्वतः पास हो जाते हैं. ऐसा कानून है कि 8वीं में तक के बच्चों को किसी भी सूरत में परीक्षा में फेल नहीं करना है.

लेकिन, नयी व्यवस्था में 5वीं और 8वीं की परीक्षा में फेल होनेवाले बच्चे को एक और मौका दिया जायेगा. यदि परीक्षा मार्च में हुई है, तो मई में उसे फिर से परीक्षा देने का मौका मिलेगा. इस बार भी यदि वह फेल हो जाता है, तो उसे एक साल और उसी कक्षा में रहना होगा.

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ऐसा माना जा रहा है कि हाल के दिनों में 11वीं के रिजल्ट में जो गिरावट दर्ज की गयी है, उसकी वजह वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ही है. 11वीं में रिजल्ट खराब होने के बाद कई राज्यों में छात्र हिंसक हो गये. उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया. विशेषज्ञ बताते हैं कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में 10वीं की परीक्षा को भी ऑप्शनल बना दिया गया था, जिससे उच्च शिक्षा का स्तर भी गिर गया. लेकिन, वर्ष 2018 से इस व्यवस्था को बदलने का केंद्र सरकार ने फैसला कर लिया है.

इतना ही नहीं, पहली कक्षा से कॉम्प्रिहेंसिव एंड कांटिन्यूअस इवैल्यूएशन (सीसीई) सिस्टम लागू करने और बच्चों को प्रमोट करने की व्यवस्था ने शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित किया. रही-सही कसर सरकारी स्कूलों में लागू की गयी मध्याह्न भोजन योजना ने पूरी कर दी. शिक्षक खाद्य पदार्थों का हिसाब रखने में व्यस्त हो गये और बच्चों को पढ़ाने पर उनका ध्यान ही नहीं रहा. नतीजा यह हुआ कि देश की शिक्षा प्रणाली ध्वस्त होती चली गयी.

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अब 24 राज्यों ने फैसला किया है कि वह सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (केब) ने उस उपसमिति के सुझावों को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया था कि बच्चों को फेल नहीं करने की नीति को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाना चाहिए. प्रस्तावित संशोधन में बच्चों के सीखने के स्तर को सुधारने पर बल दिया गया है.

हालांकि, चार राज्य अभी नयी व्यवस्था को लागू करने के पक्ष में नहीं हैं. आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और महाराष्ट्र का कहना है कि नयी व्यवस्था को तत्काल लागू किया जाना संभव नहीं है.

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