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आज भी दो कमरों के घर में रहते हैं बागुन दा

चाईबासा से लौट कर अजय/जीवेश खपरैल बरामदा उसके भीतर घिस सी गयीं चार कुरसियां. एक हिस्से में चौकी लगी हुई है. उसके ठीक सामने पुराना टेबल. इसके पीछे बैठे व्यक्ति को देख कर नहीं लगा कि यह पांच बार सांसद, चार बार विधायक व मंत्री रह चुके बागुन सुम्ब्रुई हैं. उम्र 94 साल, पर ऊर्जा […]

चाईबासा से लौट कर अजय/जीवेश
खपरैल बरामदा उसके भीतर घिस सी गयीं चार कुरसियां. एक हिस्से में चौकी लगी हुई है. उसके ठीक सामने पुराना टेबल. इसके पीछे बैठे व्यक्ति को देख कर नहीं लगा कि यह पांच बार सांसद, चार बार विधायक व मंत्री रह चुके बागुन सुम्ब्रुई हैं.
उम्र 94 साल, पर ऊर्जा में कोई कमी नहीं. अब भी लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसे दूर करने की कोशिश करते हैं. जो होने लायक रहा, साफ-साफ कह दिया. झूठे आश्वासन नहीं. इससे आपको भले फर्क पड़े, बागुन सुम्ब्रुई को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आज एकाध टर्म सांसद-विधायक होने का मतलब भव्य हवेली व चकाचौंध से भरा जीवन, पर आपने कैसे बचाया अपने आपको? बागुन दा के चेहरे पर निर्विकार सी हंसी. कहते हैं : हमने बड़ों से सुना है कि आदमी को क्या चाहिए? लाज बचाने भर कपड़ा, रहने भर को मकान और पेट भरने को अनाज. मेरे पास तो दो कमरे का घर है. इससे ज्यादा की जरूरत किसे है. सब तो यहीं छोड़ कर जाना है. आज जब गाड़ियों पर बड़े-बड़े बोर्ड लगा कर घूमना पॉलिटिकल कल्चर बन गया है, वहीं बागुन दा के घर के बाहर कोई नेम प्लेट नहीं. वह कहते हैं : नेम प्लेट की क्या जरूरत, कौन नहीं जानता बागुन सुम्ब्रई को. किसी रिक्शावाले से कह कर देखिए, सीधा यहीं लेकर आयेगा.
सब पैसे का खेल चल रहा : वह कहते हैं कि सार्वजनिक जीवन में काम से ही पहचान मिलती है. हमने अपने पुरखों से यही सीखा है. नहीं करेंगे, तो पहचान क्या मिलेगी. राजनीति में पैसे के प्रभाव को वह खतरनाक मानते हैं. लोकतंत्र के विरुद्ध भी. सब जगह पैसा हावी हो गया है. सब पैसा के पीछे भाग रहे हैं. ऐसे में यही हाल होगा. मुखिया से लेकर सब एक जैसे हैं. यहां प्राथमिक शिक्षक की बहाली हो रही, पर उसमें भी वैसे लोगों को रखा जा रहा है, जो स्थानीय भाषा नहीं जानते, कैसे पढ़ायेंगे?
बागुन दा के आने का मतलब काम होना तय : बागुन दा के रूटीन में आज भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. सुबह चार बजे उठ जाना. फिर योग-ध्यान, हल्का नाश्ता और फिर सात बजे से शुरू होता है मिलने आनेवालों से बातचीत का दौर. मुलाकात का यह सिलसिला रात नौ बजे तक चलता (अभी स्वास्थ्य में आयी कुछ समस्या को लेकर दिन में एक बजे से तीन बजे तक वह आराम करते हैं) है. इस दौरान जरूरत हुई, तो मुलाकाती के काम के लिए संबंधित जगह या अधिकारी के पास पहुंच भी जाते हैं. वहां उनका पहुंचना ही काफी है, काम तो होकर रहता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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