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12 लाख बच्चों को देना है अंडा, पशुपालन ने खड़े किये हाथ

रांची: समाज कल्याण विभाग राज्य भर के आंगनबाड़ी केंद्रों पर अंडे उपलब्ध कराने का जिम्मा महिलाअों के स्थानीय स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को देना चाहता है. पर अधिकारियों को शक है कि एसएचजी के माध्यम से यह काम हो सकेगा. इसलिए राज्य भर के 38432 आंगनबाड़ी केंद्र के तीन से पांच वर्षीय बच्चों के लिए […]

रांची: समाज कल्याण विभाग राज्य भर के आंगनबाड़ी केंद्रों पर अंडे उपलब्ध कराने का जिम्मा महिलाअों के स्थानीय स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को देना चाहता है. पर अधिकारियों को शक है कि एसएचजी के माध्यम से यह काम हो सकेगा. इसलिए राज्य भर के 38432 आंगनबाड़ी केंद्र के तीन से पांच वर्षीय बच्चों के लिए अंडा आपूर्ति करने के लिए फिर से टेंडर निकल सकता है.

इससे पहले राज्य भर के करीब 17.5 लाख बच्चों को सप्ताह में तीन दिन अंडे उपलब्ध कराने के लिए समाज कल्याण निदेशालय ने टेंडर निकाला था. इसके माध्यम से आपूर्तिकर्ता का चयन भी कर लिया गया. पर आपूर्तिकर्ता ने यह कह कर किनारा कर लिया है कि पहले की तुलना में बच्चों की संख्या कम हो गयी है, लिहाजा अंडे उपलब्ध कराने पर उसे अार्थिक नुकसान होगा. गौरतलब है कि सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों के पांच वर्षीय बच्चों को राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन कराने का निर्णय लिया है.


इन बच्चों को प्रिपेटरी क्लास में नामांकित किया जायेगा, जिसे शिशु सदन के नाम से जाना जायेगा. पांच से छह वर्ष वाले बच्चों को स्कूल भेजने पर अांगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की संख्या करीब 30 फीसदी (लगभग 5.5 लाख) घट जाने का अनुमान है. इधर, समाज कल्याण विभाग ने पशुपालन विभाग से अंडे उपलब्ध कराने का अाग्रह किया. पर पशुपालन विभाग ने इतनी अधिक संख्या में अंडे उपलब्ध कराने में असमर्थता जाहिर की है. वहीं, बच्चों को पोषाहार के रूप में अंडा उपलब्ध कराने में विलंब हो रहा है. दरअसल, राज्य सरकार ने तय किया था कि आंगनबाड़ी के तीन से छह वर्षीय बच्चों को पोषाहार में अंडा दिया जायेगा. पर सप्ताह में तीन दिन अंडा देने की यह योजना शुरू नहीं हो सकी है.
अंडा क्यों?
दरअसल, आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को पोषाहार के रूप में अंडा उपलब्ध कराने की योजना झारखंड के पड़ोसी राज्यों सहित देश के आठ राज्यों में पहले से चल रही है. इनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, बिहार, अोड़िशा, प. बंगाल व तमिलनाडु शामिल हैं. झारखंड के बच्चे अति कुपोषित हैं. इसलिए यहां भी अंडे उपलब्ध कराने की जरूरत महसूस हुई. बच्चों को अंडा देने के पीछे तर्क यह है कि अंडा में कैलोरी, प्रोटीन, वसा (फैट), विटामिन-ए, आयरन व कैल्शियम मौजूद रहता है. अंडे जल्दी खराब नहीं होते. इनमें मिलावट नहीं की जा सकती तथा बच्चों के लिए यह बाताना आसान है कि उन्होंने किसी सप्ताह में कितने अंडे खाये. इससे योजना का भौतिक सत्यापन करना भी आसान है.
तीन जिलों में चला था पायलट प्रोजेक्ट
फरवरी 2016 में कैबिनेट के निर्णय के बाद पोषाहार के रूप में अंडे देने की योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तीन जिलों में चली थी. रांची, दुमका व पूर्वी सिंहभूम के आंगनबाड़ी व लघु आंगनबाड़ी केंद्रों में छह माह तक अंडे दिये गये हैं. कैबिनेट की सहमति के बाद निकले विभागीय संकल्प में यह जिक्र था कि योजना सफल रही, तो इसे अन्य सभी जिलों में लागू किया जायेगा. पर यह काम शुरू नहीं हो सका है.

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