मोहम्मदगंज. 21वीं सदी के भारत में विज्ञान एक तरफ तरक्की कर रहा है. वही दूसरी ओर आज भी लोग अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसे हुए. विज्ञान के इस युग में भी ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास की जड़ें काफी गहरी हैं. पलामू जिले के मोहम्मदगंज प्रखंड क्षेत्र के कई गांवों में भूत-प्रेत के नाम पर ओझा-गुणी चांदी काट रहे हैं. झाड़ फूंक कराने के लिए पलामू व गढ़वा जिला के अलावा दूसरे राज्यों से भी लोग ओझा-गुणी के पास पहुंचते हैं. हालांकि प्रशासन, सरकार व न्यायपालिका अंधविश्वास को सच नहीं मानती. समाज के लोगों के दिलों दिमाग में घर करने वाले अंधविश्वास की भ्रांतियों को दूर करने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है. सरकार व न्यायपालिका अंधविश्वास की भ्रांति को कानूनी अपराध की श्रेणी में रखा है. इसके बावजूद आज भी खुलेआम प्रखंड के कई गांवों में ओझा-गुणी के घर दरबार सजता है और लोग झाड़ फूंक कराते हैं. इससे अंधविश्वास की जाल में फंसे लोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. साथ ही वे शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान होते हैं. अंधविश्वास की कमजोरी का नाजायज फायदा उठा कर इसे संचालित करने वाले ओझा गुणी मालामाल हो रहे हैं. दूसरी तरफ अंधविश्वास से जकड़े लोग परेशान हैं. ओझा गुणी की दुकानदारी धड़ल्ले से चल रही है.
कई गांव में लगता है झाड़ फूंक का दरबार
प्रखंड के भजनिया, सोनबरसा का नवकटोला, गोलापत्थर, बैरिया टोला, बटौवा, सिघना, हाथदाह, मोहम्मदगंज का सिंचाई कॉलोनी, राजनडीह समेत अन्य कई गांव में ओझा-गुनियों के दरबार सजते हैं. जिसमें आसानी से इसके चक्कर में पड़ने वाले लोग पहुंचते हैं. सप्ताह का रविवार, मंगलवार, गुरुवार का दिन का झाड़ फूंक का विशेष दिन माना जाता है. भजनिया गांव में चार घर चिह्नित किये गये हैं. जबकि अन्य गांव में कई लोग ऐसे हैं, जो भूत-प्रेत के नाम पर झाड़फूंक कर आर्थिक शोषण कर रहे हैं. बताया जाता है कि सोनबरसा का नवकटोला में लगनेवाला अंधविश्वास का दरबार का स्यवंभू व्यक्ति कभी पुरुष नर्तक के रूप में था. आज वह अंधविश्वास व रूढ़िवादी परंपरा में महारत हासिल कर लिया है. इसके दरबार में पलामू, गढ़वा सहित छत्तीसगढ़, यूपी, बिहार व कैमूर जिला के गांव से लोग पहुंचते हैं. जानकारी के मुताबिक लोगों से पूजा सामग्री उपलब्ध कराने के नाम पर मनमाना रकम वसूला जाता है. इस तरह ओझा-गुणी मनमाने तरीके से धन कमाते हैं. अंधविश्वास में फंसे लोगों की बाधा दूर नही होती. लेकिन वे लोग शरीरिक, मानसिक व आर्थिक रूप से अधिक परेशान हो जाते है. पुलिस प्रशासन को भी ओइन सब गतिविधियों की जानकारी है और प्रशासन के द्वारा कार्रवाई भी की जाती है, लेकिन कुछ दिनों के बाद पुन: यथावत दरबार सजने लगता है और लोग शोषण के शिकार होते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है