24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शक्षिकों में कर्तव्यबोध की कमी, गिर रही गुरु-शष्यि परंपरा

शिक्षकों में कर्तव्यबोध की कमी, गिर रही गुरु-शिष्य परंपरा प्रभात खबर के सर्वे में शिक्षकों ने कहा शिक्षक दिवस पर विशेष हमने पूछे चार सवाल1. जब आप विद्यार्थी थे, आज आप शिक्षक हैं, क्या-क्या बदलाव हुआ?2. तकनीक की चुनौतियों के बीच खुद को किस रूप में पाते हैं?3. क्या पहले की तरह गुरु-शिष्य परंपरा रह […]

शिक्षकों में कर्तव्यबोध की कमी, गिर रही गुरु-शिष्य परंपरा प्रभात खबर के सर्वे में शिक्षकों ने कहा शिक्षक दिवस पर विशेष हमने पूछे चार सवाल1. जब आप विद्यार्थी थे, आज आप शिक्षक हैं, क्या-क्या बदलाव हुआ?2. तकनीक की चुनौतियों के बीच खुद को किस रूप में पाते हैं?3. क्या पहले की तरह गुरु-शिष्य परंपरा रह गयी है?4. बच्चों के विकास में अभिभावकों का कितना दवाब होना चाहिए?क्या मानना है शिक्षकों का 70 फीसदी : शिक्षकों ने माना कि पहले की तरह जिम्मेदारी नहीं निभाते शिक्षक. गुरु-शिष्य परंपरा में गिरावट हुई है 30 फीसदी : शिक्षकों ने माना कि जिन शिक्षकों में गुरुत्व बरकरार है, उनका आज भी सम्मान होता 100 फीसदी : शिक्षक मानते हैं कि आज की शिक्षा काफी बदली है100 फीसदी : शिक्षकों का मानना है कि निजी स्कूलों में बच्चे मशीन की तरह हो गये हैं 80 फीसदी : शिक्षक शिक्षा में तकनीकी समावेश को अच्छा मानते हैं 20 फीसदी : शिक्षक तकनीकी समावेश को ठीक नहीं मानते 100 फीसदी : शिक्षक मानते हैं कि अभिभावकों व सामाजिक दबाव से बच्चों का विकास बाधित हो रहा है क्या निकला सर्वे का रिजल्ट – सामाजिक दबाव की वजह से बच्चे स्वाभाविक पढ़ाई से विमुख हो रहे- खत्म हो रही पठन-पाठन की पारंपरिक प्रणाली- बच्चे मोबाइल ज्यादा सीख रहे, पर दुष्प्रभाव को रोकने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों की लगाम जरूरी प्रभात खबर टोली, रांचीशिक्षा में व्यवसायीकरण का असर दिखने लगा है. इससे गुरु-शिष्य परंपरा में गिरावट हुई है. शिक्षक भी अब पहले की तरह अपनी पूरी जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते हैं. ये बातें प्रभात खबर की ओर से कराये गये एक सर्वे में उभर कर सामने आयी है. सर्वे में शिक्षकों से चार सवाल पूछे गये थे. सवालों के जवाब में 70 फीसदी शिक्षकों ने माना कि शिक्षकों में कर्तव्य बोध की कमी हुई है. पहले शिक्षक अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को अधिक तवज्जो देते थे. पर अब इसमें ह्रास हुआ है. इस कारण गुरु-शिष्य परंपरा में गिरावट हुई है. पहले शिक्षकों के आदेश का अक्षरश: पालन होता था. पर अब उनका सम्मान कम होने लगा है. शिक्षक इसके लिए सरकारी कानून को भी जिम्मेदार मानते हैं. हालांकि सरकारी और ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में कहीं-कहीं गुरु-शिष्य परंपरा आज भी कायम है. 30 फीसदी शिक्षकों का मानना है कि जिन शिक्षकों में गुरुत्व बरकरार है, उनका आज भी सम्मान होता है. शिक्षा आज भी गुरुमुखी है. बच्चे आज भी सिंपल हैं, उन्हें जैसा ढाला जायेगा, वे वैसा ही सीखेंगे. शिक्षक बच्चों को गढ़ते हैं. उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, उनमें संस्कार डालते हैं.बदला है माहौल लगभग शत प्रतिशत शिक्षकों का कहना है कि पहले और आज की शिक्षा काफी बदली है. माहौल बदला है. बच्चों में भी पेशेवर नजरिया कूट-कूट कर भरी जा रही है. सामाजिक दबाव की वजह से बच्चे स्वाभाविक पढ़ाई से विमुख हो रहे हैं. इस वजह से बच्चों का बचपन खो रहा है. बच्चे आनंदपूर्वक पढ़ें, चीजों को समझें. इसके लिए उनके पास समय नहीं हो. बच्चों में एस्थेटिक वैल्यू कम हो गये लगभग सभी शिक्षकों का मानना है कि निजी स्कूलों में बच्चों का जीवन मशीन की तरह हो गया है, उनमें एस्थेटिक वैल्यू कम हो गये हैं. अब बच्चों को बहू आयामी व्यक्तित्व बनने की होड़ में लगना पड़ता है. पठन-पाठन की पारंपरिक प्रणाली भी विलुप्त हो गयी है. अब बच्चे ढाई वर्ष में ही एबीसीडी पढ़ने लगते हैं. पहले पांचवीं कक्षा में एबीसीडी पढ़ाई जाती थी. समाप्त हो गयी है डिक्शनरी शिक्षा में तकनीकी समावेश को 80 प्रतिशत शिक्षक अच्छा बताते हैं, क्योंकि अब डिक्शनरी समाप्त हो गयी है. अब गूगल से ही बच्चे कुछ मिनटों में किसी भी चीज का उत्तर ढूंढ़ लेते हैं. शिक्षकों का मानना है कि कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, सॉफ्ट प्रेजेंटेशन, थ्री-डी तकनीक, ऑडियो-वीडियो लेक्चर मैटेरियल से शिक्षा में बदलाव हो रहा है. अब ई-लर्निंग, स्मार्ट क्लास हिस्सा बन रहे हैं. निजी विद्यालयों के अलावा सरकारी विद्यालयों में भी इसका समावेश हो रहा है. शिक्षकों का मानना है कि स्कूली बच्चे अब मोबाइल से ज्यादा सीखते हैं, इसका एक अच्छा वर्किंग मॉडल बनाया जाना चाहिए. दुष्प्रभावों को रोकने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों की लगाम जरूरी है. 20 प्रतिशत शिक्षक तकनीकी समावेश को ठीक नहीं मानते हैं. दबाव से बाधित हो रहा विकास शिक्षकों का मानना है कि माता-पिता या सामाजिक दबाव की वजह से बच्चों का विकास बाधित हो रहा है. शत प्रतिशत शिक्षकों का कहना है कि अभिभावक यह चाहते हैं कि उनका बच्चा 99 प्रतिशत अंक लाये. 90 फीसदी अंक सही नहीं है. इसलिए आइआइटी, मेडिकल और अन्य के लिए बच्चे प्रारंभिक दौर से ही भागने लगते हैं. कोचिंग, को-करिकुलर एक्टिविटीज, शौकिया क्लब और अन्य गतिविधियों में हर बच्चा शामिल हो, यह भी सबकी कामना रहती है. बच्चों का बचपन इस अनावश्यक दबाव से खोता जा रहा है. शिक्षकों का कहना है कि बच्चों में विशेषज्ञता 12वीं के बाद आती है. 10वीं के बाद 11वीं का कंपीटीशन बच्चों को लक्ष्यहीन भी बना रहा है. ऐसे में अभिभावकों को बच्चों की स्वच्छंदता पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए. शिक्षकों का भी यह दायित्व होना चाहिए की वे सभी बच्चों से समान रूप से पेश आयें, उनसे दूरी न बनायें.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें