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2,65,819 रुपये के गबन मामले में छह संवेदकों की सजा जिला अदालत ने रखी बरकरार

अनुमंडलीय अस्पताल पाकुड़ के सरकारी भवन का अनुरक्षण एवं मरम्मत कार्य में अनियमितता बरतने से मामला जुड़ा है.

पाकुड़ कोर्ट. अनुमंडलीय अस्पताल पाकुड़ के भवन मरम्मत कार्य में हुए वित्तीय अनियमितता और सरकारी धन गबन के मामले में प्रथम अपीलीय न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए निचली अदालत द्वारा दी गयी सजा को बरकरार रखा है. सत्र न्यायाधीश शेषनाथ सिंह की अदालत ने छह अभियुक्तों की ओर से दायर सभी क्रिमिनल अपीलों को खारिज कर दिया और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी निर्मल कुमार भारती द्वारा 22 अक्टूबर 2019 को सुनाए गए दंडादेश को वैध ठहराया. मामला वर्ष 2006 का है, जब तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी दिलीप कुमार झा ने पाकुड़ थाना कांड संख्या 149/2006 दर्ज कराया था. आरोप था कि झारखंड सरकार के भवन निर्माण विभाग द्वारा अनुमंडलीय अस्पताल के अनुरक्षण एवं मरम्मत कार्य के लिए आवंटित 51.36 लाख रुपये की राशि में भारी अनियमितता बरती गयी. भवन प्रमंडल साहिबगंज द्वारा यह कार्य छह संवेदकों के बीच विभाजित किया गया था. उपायुक्त द्वारा गठित तकनीकी जांच दल ने निरीक्षण में पाया कि कार्यों को कम करके अधिक दिखाया गया और फर्जी बिल के आधार पर 2,65,819 रुपये की अवैध निकासी की गयी. जांच में यह स्पष्ट हुआ कि यह सरकारी धन के गबन का गंभीर मामला है. इसी आधार पर राजेश सिंह, हरिचरण रजक, राजेंद्र प्रसाद सिंह, वीरेंद्र कुमार विमल, श्याम सुंदर प्रसाद और अजीत कुमार चौधरी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी निर्मल कुमार भारती की अदालत ने सुनवाई के बाद सभी अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (सरकारी धन का गबन) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत तीन-तीन वर्ष के सश्रम कारावास तथा प्रत्येक पर 10 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनायी थी. सभी आरोपी इस फैसले के बाद जमानत पर थे. इस आदेश को चुनौती देते हुए अभियुक्तों की ओर से क्रमशः क्रिमिनल अपील संख्या 37/2019, 38/2019, 39/2019, 40/2019 और 41/2019 दायर की गयी थीं. सत्र न्यायाधीश शेषनाथ सिंह की अदालत में इन सभी अपीलों की संयुक्त सुनवाई की गयी. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपीलीय न्यायालय ने माना कि निचली अदालत का निर्णय सही तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित है. अदालत ने कहा कि जांच दल की रिपोर्ट, दस्तावेजी प्रमाण एवं अन्य साक्ष्य अभियुक्तों के विरुद्ध लगे आरोपों को प्रमाणित करते हैं. इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई सजा पूर्णतः उचित और वैध है. अदालत ने अपने फैसले में निचली अदालत के आदेश को जस का तस रखते हुए सभी अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा है.

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