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जल, जंगल, जमीन, भाषा व परंपराओं को बचाने की अपील

हूल समिति ने पूर्वजों व शहीदों को याद कर विश्व आदिवासी दिवस मनाया. वक्ताओं ने कहा कि यह दिवस केवल उत्सव का नहीं, आदिवासी अधिकारों की रक्षा व सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का दिन है.

पाकुड़ नगर. संथाल परगना हूल समिति की ओर से शनिवार को लड्डू बाबू आम बागान में विश्व आदिवासी दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. कार्यक्रम की शुरुआत दिशोम गुरु शिबू सोरेन के चित्र पर माल्यार्पण और श्रद्धासुमन अर्पित कर की गयी. इस अवसर पर आदिवासी समाज के लोगों ने अपने पूर्वजों और शहीदों को याद करते हुए उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में एसी जेम्स सुरीन, बीडीओ सीमर अल्फ्रेड मुर्मू और समाजसेवी लुत्फुल हक उपस्थित थे. वक्ताओं ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों की रक्षा और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का दिन है. इस दौरान वक्ताओं ने जल, जंगल, जमीन, भाषा और परंपराओं को बचाने की अपील की. कहा कि आदिवासी समाज को एकजुट रहकर अपनी पहचान और अस्तित्व के लिए संघर्ष करना होगा. इस अवसर पर युवाओं से शिक्षा और जागरूकता के जरिए समाज को सशक्त बनाने का आह्वान किया. एसी जेम्स सुरीन ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस हमारे अस्तित्व और पहचान का प्रतीक है. हमें अपनी भाषा, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर संघर्ष करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहें. वहीं बीडीओ समीर अल्फ्रेड मुर्मू ने कहा कि यह दिवस हमें अपनी परंपराओं को सहेजने और नयी पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराने का अवसर देता है. शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हम अपने समाज को मजबूत और आत्मनिर्भर बना सकते हैं. इस अवसर पर समिति के सदस्यों ने ग्राम प्रधानों को सम्मानित भी किया. मौके पर मार्क बास्की, रामसिंह टुडू, विकास गोंड, लखन हांसदा, जोहन मुर्मू सहित अन्य मौजूद थे. वहीं अमड़ापाड़ा के जराकी पंचायत भवन में झारखंड विकास परिषद की ओर से विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया. संस्था के राजीव रंजन ने आदिवासी दिवस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देश में लगभग 700 जनजातियां हैं, जिनमें झारखंड में सर्वाधिक संथाल, उरांव और मुंडा पायी जाती हैं. कहा कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

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