चंदवा : देश में लाह उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड का अलग स्थान है. झारखंड में भी सबसे उतम किस्म का लाह लातेहार में पाया जाता है. इतना ही नहीं देश के 50 फीसदी लाह का उत्पादन झारखंड में होता है, जिसमें चंदवा का बड़ा योगदान है. उक्त बातें वन उत्पादकता संस्थान रांची समूह के समन्वयक योगेश्वर मिश्रा ने शुक्रवार को लाह बगान परिसर में लाह उत्पादनकर्ता किसानों से कही. श्री मिश्रा ने कहा कि झारखंड में लाह की 21 प्रजातियां हैं.
जिले के लाह भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में प्रसिद्ध है. स्थानीय किसानों को लाह उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ने पर बल दिया. इसके साथ ही किसानों को बांस की खेती पर भी बल दिया. कहा कि बांस कि 125 प्रजातियां हैं. झारखंड में फिलवक्त पांच प्रकार के बांस पाये जाते हैं. बांस वन उत्पाद से बाहर रखा गया है. इसे काटने व बेचने के लिए वन विभाग से अनुमति की जरूरत नहीं है. जिला परिषद सदस्य अनिता देवी ने कहा कि किसी समय में लाह की खेती के लिए चंदवा का नाम विशेष तौर पर जाना जाता था.
कुछ कारणवश काफी दिनों से यहां लाह की खेती में कमी आयी है. प्रशासनिक मदद मिले, तो फिर से यहां का लाह विश्व में अपनी पहचान दिलायेगा. रामयश पाठक ने कहा कि वन विभाग की उदासीनता से स्थानीय लोगों ने लाह की खेती से मुंह मोड़ लिया. कार्यक्रम में लाह अनुसंधान केंद्र रांची के एसएन वैद्य, नेसार आलम, बीडी पंडित ने भी किसानों को लाह की उन्नत बीजों के प्रयोग व रख-रखाव से संबंधित जानकारी विस्तार से दी.