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सती के आत्मदाह व भगवान राम की परीक्षा किया गया वर्णन

नारायणपुर के घाटी बड़बहाल यज्ञ मैदान में पांच दिवसीय श्रीराम कथा आयोजन चल रहा है.

नारायणपुर. नारायणपुर घाटी बड़बहाल यज्ञ मैदान में पांच दिवसीय श्रीराम कथा आयोजन चल रहा है. काशी से पहुंचे कथावाचक कन्हैया द्विवेदी ने सती का आत्मदाह, भगवान राम की परीक्षा, शिव विवाह का संगीतमय प्रसंग सुनाया. इस दौरान वृंदावन से पहुंचे कलाकार नवीन की ओर से देवी-देवताओं की झांकी की प्रस्तुति की गयी. कथावाचक ने कहा माता सती की मृत देह भगवान शिव ने अपने कंधों पर उठा लिया था और वे संसार का भ्रमण करते हुए तांडव कर रहे थे. भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे, ब्रह्मदेव महादेव का क्रोध तब तक शांत नहीं हो सकता जब तक देवी सती की मृत देह उनके कंधों पर है. हिंदू धर्म में भगवान राम और देवी सीता की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. भगवान राम का जीवन आज भी लोगों के लिए एक सीख है. उन्होंने एक आदर्श जीवन जी कर हर किसी को प्रेरणा दी, जिसे लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं. ऐसी ही एक कथा का जिक्र आज हम करेंगे. ये कथा तब की है जब त्रेतायुग में भगवान राम माता सीता का हरण होने के बाद पूरे वन में सीते-सीते कहकर उन्हें व्याकुल हो ढूंढ रहे थे. ये देख हर कोई हैरान था, क्योंकि भगवान राम श्री हरि विष्णु के अवतार हैं. इस घटना को देखकर प्रभु राम परमात्मा हैं या नहीं उनकी परीक्षा लेने के लिए देवी सती धरती लोक पर मां सीता का स्वरूप धारण कर चली आईं. हालांकि भगवान शिवजी ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन फिर भी वे अपने निर्णय पर अटल रहे. जैसे माता सती भगवान राम के सामने पहुंची, तो उन्होंने मां को तुरंत ही पहचान लिया. इसके बाद मर्यादा पुरुषोत्तम ने भगवान शिव के बारे में भी पूछ लिया, जिससे देवी सती बहुत ज्यादा हैरान हुईं. इस घटना के बाद मां सती का भ्रम पूरी तरह टूट गया और उन्हें ये यकीन हो गया कि राम जी ही श्री हरि विष्णु के अवतार हैं. कथावाचक ने कहा कैलाश वापस आने के बाद मां सती ने भगवान शिव को कुछ भी नहीं बताया, जब शिवजी ने पूछा, तब उन्होंने कहा कि मैंने भगवान राम की कोई परीक्षा नहीं ली है, मैं वहां जाकर उनका दर्शन करके वापस आ गयी हूं. हालांकि शिव जी को पूरी परीक्षा की जानकारी पहले ही हो चुकी थी, जिसके चलते उन्होंने देवी सती का अपनी पत्नी के रूप में परित्याग कर दिया था, क्योंकि वे सीता जी को माता के रूप में देखते थे. शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग पर कहा कि पर्वत राज हिमालय की घोर तपस्या के बाद उनके घर अवतरित माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं. एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया. उन्होंने कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत पिशाचों के साथ बरात लेकर पहुंचे तो उसे देखकर पर्वतराज और उनके परिजन अचंभित हो गए, लेकिन माता पार्वती खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार कर लीं. शिव-पार्वती प्रसंग का वर्णन करते हुए कथा व्यास श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि शिव पार्वती की आराधना भागवत का अभिन्न अंग है. इसके श्रवण से ही मनुष्य के सारे मानसिक व आत्मीय विकारों का अंत हो जाता है. उन्होंने कहा की ईश्वर के प्रति समर्पण भाव से ही प्रभु मिलते हैं. मौके पर गुणधर सेन, कन्हैया लाल ओझा, पंकज कुमार सिंह, सुभाष रजक, मुरारी रवानी, अकलू रवानी, मनमोहन तिवारी पुरुषोत्तम ओझा, प्रदुमन रजवार, रामदेव दास, नरेश राय, मुकेश तिवारी, कृष्ण कांत साह, गौतम ओझा, सुभाष रजक, वरुण रवानी, राज कुमार ओझा, कुंदन तिवारी आदि मौजूद रहे.

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