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TATA संस्थापक दिवस : टाटा स्टील इस्पात ही नहीं बनाती, दिलों को भी जोड़ती है, पढें- प्रेरणादायक कहानियां

टाटा स्टील अपने 117 साल के इतिहास में कई रोचक कहानियां समेटे हुए है जो प्रेरणादायक हैं. इस कंपनी में आज भी ऐसे कई कर्मचारी हैं जिनकी चार से पांच पीढ़ियों ने कंपनी को स्थापना काल से लेकर इस मुकाम तक पहुंचने में अपना योगदान दिया है.

जमशेदपुर : टाटा स्टील अपने 117 साल के इतिहास में कई रोचक कहानियां समेटे हुए है जो प्रेरणादायक हैं. इस कंपनी में आज भी ऐसे कई कर्मचारी हैं जिनकी चार से पांच पीढ़ियों ने कंपनी को स्थापना काल से लेकर इस मुकाम तक पहुंचने में अपना योगदान दिया है.

‘प्रभात खबर’ ने ऐसे तीन परिवारों से बात की. इन परिवारों के सदस्य टाटा स्टील को केवल अपने रोजगार का जरिया नहीं मानते, बल्कि टाटा कंपनी से इनका दिलों का रिश्ता है. ये कर्मचारी खुद को टाटा परिवार का सदस्य मानते हैं. इनमें ऐसे भी लोग हैं जो एक ही क्वार्टर में पिछले 70 वर्षों से रह रहे हैं. ये वैसे परिवार हैं जिन्होंने टाटा कंपनी को स्थापना काल से आगे बढ़ते, एक गांव को शहर का रूप लेते देखा है.

70 साल से एक ही क्वार्टर में रह रहा है बारिक परिवार: ओडिशा के भद्रक का रहने वाला बारिक परिवार टाटा को अपना परिवार व खुद को उसका सदस्य मानता है. कदमा रंकिणी मंदिर, कालिंदी रोड के पास स्थित 12 एल 4 क्वार्टर में पिछले 70 सालों से अमरेंद्र कुमार बारिक का परिवार रह रहा है. अमरेंद्र के परदादा (उनके दादा के पिता अनंत बारिक) कंपनी के स्थापना काल में टाटा स्टील से जुड़े थे.

बाद में उनके दादा गंगाधर बारिक ने सिंटर प्लांट में 40 वर्षों तक अपनी सेवा दी. गंगाधर बारिक के बेटे (अमरेंद्र बारिक के पिता) धरनीधर बारिक 1960 में कंपनी के एसएमएस-1 विभाग से जुड़े. 35 साल सेवा देने के बाद 1995 में इएसएस स्कीम का लाभ लेते हुए सेवानिवृत्त हुए. इससे पूर्व वर्ष 1989 में अस्थायी तौर पर अमरेंद्र बारिक कंपनी ज्वाइन कर चुके थे और 1992 में उन्हें स्थायी कर्मचारी के तौर पर एलडी-2 में नियुक्ति मिली. इनकी तीन पीढ़ी का जन्म और शिक्षा इसी शहर के स्कूल-कॉलेजों में हुई.

इ सतीश कुमार की पांचवीं पीढ़ी दे रही टाटा को सेवा_: ट्यूब कॉलोनी के एल-6/89, बारीडीह में रहने वाले इ सतीश कुमार की पांचवीं पीढ़ी टाटा स्टील में अपनी सेवा दे रही है. इ सतीश कुमार के पुत्र इ तपन कुमार वर्तमान टाटा स्टील के एलडी-2 स्लैब कास्टर में कार्यरत हैं.

इ सतीश खुद 1980 से 2018 तक ट्यूब डिवीजन के पीटी मिल में कार्यरत थे. उन्होंने बताया कि उनके दादा के पिता इ मलेश्वर राव 1909 में टाटा आये और कंपनी ज्वाइन की. उनके पिता (मलेश्वर राव के पिता) इ नागबोसनम जो मद्रास इंफेंट्री में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे, सेवानिवृत्त होकर 1924 में जमशेदपुर आये और टाटा स्टील ज्वाइन किया. कंपनी के अंदर एक दुर्घटना में 1926 में उनकी मौत हो गयी. इ मलेश्वर राव 1944 में सेवानिवृत हुए. बाद में इ सतीश के पिता इएस रामा राव ने 1955 में ट्यूब डिवीजन के प्लानिंग सेक्शन में योगदान दिया. वे 1996 तक कंपनी से जुड़े रहे. इसी बीच 1980 में इ सतीश कंपनी ज्वाइन कर चुके थे. इ सतीश मूल रूप से आंध्र प्रदेश के एलूर के रहने वाले हैं.

टाटा स्टील से 110 साल पुराना नाता है कमल कांत स्वाईं परिवार का_ एलडी-2 में कार्यरत और एग्रिको लाइट सिग्नल के पास स्थित क्राॅस रोड 13 के 29-एल4 में रहने वाले कमल कांत स्वाईं का टाटा से 110 वर्ष पुराना जुड़ाव रहा है. मूल रूप से ओडिशा के जगतसिंहपुर के रहने वाले कमल स्वाईं बताते हैं कि उनके दादा भिखारी स्वाईं 1910 के आसपास टाटानगर (तब कालीमाटी) आये थे. उन्होंने कंपनी के किस विभाग में ज्वाइन किया, यह उन्हें याद नहीं है. लेकिन उनके दादा की कंपनी से सेवानिवृत्ति के समय की एक तस्वीर है. जिसमें कंपनी के अधिकारी उन्हें उपहार दे रहे हैं. कमल कांत के पिता धोबी स्वाईं 1960 में टाटा कंपनी से जुड़े और 1990 में सेवानिवृत्त हुए.

कमल कांत स्वाई 1991 से एलडी-2 में कार्य कर रहे हैं. लेकिन इसके पहले इनकी चौथी पीढ़ी के तौर पर उनके बेटे कौशिक स्वाईं 2017 में अप्रेंटिस के माध्यम से ज्वाइन कर चुके हैं. कमल कांत ने कहा कि दुनिया में ऐसी कोई कंपनी नहीं है जहां किसी की चार से पांच पीढ़ियां काम करती रही हों. लेकिन टाटा कंपनी अपने कर्मचारियों को यह अवसर देती है.

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