तीन तलाक के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस कर चुके अौर पुन: बहस के लिए जाने वाले मजलिस ए सरी के सचिव अौर मुबारकपुर के मदरसा के प्रिंसिपल मुफ्ती मो. निजामुद्दीन रजवी ने कहा कि कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो यह उसकी गलती है. एक साथ तीन तलाक मना है अौर नाजायज है, लेकिन अगर वह दे देता है तो यह मान्य होगा. भारत के कानून में भी कई ऐसी चीजें हैं जो नाजायज है, लेकिन उसका नतीजा जायज है. उन्होंने कहा कि जिसने तीन तलाक दी वह इसलाम से बाहर नहीं होगा, लेकिन शरीयत के अनुसार उसको सामाजिक बहिष्कार की सजा दी जा सकती है.
देश का कानून मुसलिम पर्सनल लॉ की इजाजत देता है, लेकिन क्रिमिनल लॉ की इजाजत नहीं देता है. एक साथ तीन तलाक देने वालों को सजा के प्रावधान के मुद्दे पर कहा कि सजा देने से मसले का हल निकल जाये तो वह स्वागत करेंगे, हुकूमत या सर्वोच्च न्यायालय सजा तय करे तो मानने-नहीं मानने का सवाल नहीं पैदा होता है, लेकिन अगर सजा तसदीक कर दी जाती है, तो इस कदम से महिलायें बेइंसाफी से बच जायेंगी ऐसा नहीं है. इससे समस्या इतनी बढ़ जायेगी कि हुकूमत को कंट्रोल करना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने कहा कि आपसी झगड़े में शौहर पत्नी को तलाक देते हैं अौर उस दौरान वहां कोई नहीं रहता है. सजा की स्थिति में उसकी पुष्टि करना अौर उसका सबूत प्रस्तुत करना मुश्किल होगा, लेकिन पति को धार्मिक तौर पर फतवे का डर होता है.
तलाक गुस्से में ही दी जाती है, प्यार-मोहब्बत में तलाक नहीं होता है, हालांकि मुसलिम बिरादरी में तलाक का फीसद दूसरे धर्मों की तुलना में काफी कम (प्वाइंट 70 प्रतिशत) है. मुफ्ती निजामुद्दीन ने कहा कि सरकार या सुप्रीम कोर्ट तलाक का रास्ता बंद करना चाहते हैं तो मुसलिम समुदाय के घर-घर में इल्म की रोशनी पहुंचानी होगी. पढ़े लिखे उलेमा-कारी, इनसे जुड़े लोग या कॉलेजों में पढ़ने वाले डॉक्टर-इंजीनियर के परिवार में तलाक के मामले नहीं होते हैं, बेपढ़े-लिखे लोग जिनके घरों में इल्म की रोशनी नहीं जली उनके यहां तलाक के मामले पाये जाते हैं. उनके दाखिले की फीस कम की जाये, पढ़ाई की व्यवस्था को सहज अौर सरल बनाया जाये, तलाक स्वयं बंद हो जायेगा. प्रेस वार्ता में मुबारकपुर से आये मौलाना अब्दुल गफ्फार आजमी, तंजीम के नायाब सदर हाफिज इसरार, जियाउल मुस्तफा, मुख्तार सफी, मौलाना हारून रशीद समेत अन्य लोग मौजूद थे.