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होली पर लगेंगे केमिकल रहित पलाश के रंग…..जानें

आधुनिकता के इस दौर में लोगों को सभी चीजें एक फोन कॉल से घर बैठे मिल जाती है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वर्षों से अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए होली के लिए प्राकृतिक रंग-अबीर तैयार करते हैं. उनका मानना है कि प्राकृतिक रंगों का सौंदर्य लाजवाब होता है. इसे बनाने में […]

आधुनिकता के इस दौर में लोगों को सभी चीजें एक फोन कॉल से घर बैठे मिल जाती है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वर्षों से अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए होली के लिए प्राकृतिक रंग-अबीर तैयार करते हैं.
उनका मानना है कि प्राकृतिक रंगों का सौंदर्य लाजवाब होता है. इसे बनाने में मेहनत तो है पर मेहनत की खातिर इससे नाता तोड़ना मुश्किल है. खैर, कारण चाहे कुछ भी हो इन लोगों की मेहनत ही रंग लाती है अौर पलाश के फूलों से निकलती है होली के रंग. रीमा डे की रिपोर्ट….
कैसे बनता है केमिकल रहित रंग
ग्रामीण सबसे पहले पेड़ से फूल को तोड़ कर लाते हैं. फिर उसे टहनी से अलग करते हैं. इसके बाद एक बड़े बर्तन में पानी डालकर उसे चूल्हे पर चढ़ाते हैं. फिर जर्म्स मारने के लिए पानी में फिटकारी डालते हैं.
इसके बाद उसमें फूलों को डाल कर गर्म करते हैं. एक समय ऐसा आता है जब बर्तन में फूलों का रस ही बच जाता है. फिर उसे छान कर अलग कर धूप में सूखाया जाता है. इसके बाद उसमें टेलकम पावडर व इत्र मिलाकर अबीर तैयार होता है. इसके बाद उसे पैकेट में पैक कर दिया जाता है.
ग्रामीण इलाकों से निकल रही है पारंपरिक अबीर की खुशबू
जमशेदपुर से सटे ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक अबीर की खुशबू महक उठी है. झारखंड में ही नहीं बल्कि बंगाल तक पहुंचने वाली इस अबीर की खुशबू की होली में काफी मांग रहती है. पलाश के फूल इन दिनों दलमा पहाड़ से सटे इलाकों में काफी तादाद में देखने को मिल रहा है और इन्हीं फूलों से ग्रामीण बना रहे है फूलों की अबीर ,जमशेदपुर के आस पास का इलाका इन दिनों पलाश के फूलों से भरा पड़ा है.
फूलों को देख खिल उठता है चेहरा
बसंत ऋतु आते ही पेड़ों पर खिलते पलाश के फूल को देख ग्रामीणों का चेहरा खिल उठता है. फूलों की खुशबू चारों अोर महकने लगती है. ग्रामीण होली की तैयारी में जुट जाते हैं. दलमा से सटे चोगा गांव के लोग वर्ष भर कृषि कार्य करते हैं लेकिन बसंत के पहले वे अबीर बनाने का काम शुरू कर देते हैं. साल भर पहले ही चोगा गांव के लोगों को फूलों से बनी अबीर की मांग होने लगती है. यह अबीर शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होता है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
हम लोगों को पलाश फूल का इंतजार रहता है. पलाश के फूलों को सूखा कर हमलोग अबीर बनाकर बेचते हैं. पलाश के फूलों से बने अबीर की मांग झारखंड व पश्चिम बंगाल में अधिक है. हर्बल अबीर तैयार करने के लिए हमलोगों को होली के एक माह पहले से इस काम जुट जाना पड़ता है. इस काम में मेहनत अधिक है. हमलोग परंपरा को जीवंत बनाये रखने के लिए यह काम करते हैं, ताकि लोग कैमिकल रहित रंगों का आनंद उठा सके. प्रभात कुमार महतो
पलाश के फूल से हम लोग अबीर बनाते हैं जिसका मांग काफी है. बिहार में पलाश की फूलों से बने अबीर की मांग काफी है क्योंकि इससे त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता है. इसे बनाते समय हमलोग शुद्धता अौर जर्म्स रहित रखने की कोशिश करते हैं. -गुलाब सिंह मुंडा
पलाश का फूल हम लोग जंगल से लाते हैं और फिर उससे होली के लिए अबीर तैयार करते हैं. इस काम में हमलोग करीब 40-50 लोग हैं. एक माह पहले से ही हमें इसमें लगना पड़ता है. तब जाकर समय से पहले रंग बन कर तैयार होता है. करीब पंचास साल से हमलोग यह कारोबार कर रहे हैं. कमाई अच्छी होती है. -माणिक कुमार महतो
नारियल तेल व वैसलीन पेट्रोलियम जेली लगा कर खेलें होली : शहर के स्कीन स्पेशलिस्ट डॉ पीके बारला बताते हैं कि कैमिकल रंगों से स्कीन की समस्या होती है. रंगों को गाढ़ा अौर पक्का करने के लिए उसमें कई तरह के कैमिकल मिलाये जाते है. कई बार सेंसेटिव स्कीन में यह रंग लगने से खुजली, जलन, दाना निकलना जैसी समस्याएं होती है.
डॉ बारला ने बताया कि होली खेलने के पहले स्कीन में नारियल तेल या वैसलीन पेट्रोलियम जेली अच्छी तरह से लगा ले इससे कैमिकल युक्त होली के गुलाल सीधे तौर पर स्कीन में नहीं पहुंचेगी. बावजूद इसके कोई समस्या हो तो सबसे पहले स्कीन को मेडिकेटेड साबुन से धो ले फिर नारियल तेल या वैसलीन लगा लें. बरफ रगड़ने से भी फायदा मिल सकता है.

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