27.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

हूल क्रांति व संताल विद्रोह दिवस आज : भोगनाडीह से उठी थी जल, जंगल और जमीन छोड़ने के नारे की गूंज

संताल हूल भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए प्रथम जनक्रांति थी. जनजातीय समाज में अब तक जितने भी संघर्ष हुए हैं, उनका एक प्रधान पहलू सामुदायिक पहचान बचाना रहा है.

दशमत सोरेन, जमशेदपुर : संताल हूल भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए प्रथम जनक्रांति थी. जनजातीय समाज में अब तक जितने भी संघर्ष हुए हैं, उनका एक प्रधान पहलू सामुदायिक पहचान बचाना रहा है. जो जल, जंगल व जमीन की रक्षा से सीधा जुड़ा है. ब्रिटिश राज के शुरू के 100 सालों में नागरिक विद्रोहों का सिलसिला किसी खास मुद्दे व स्थानीय असंतोष के कारण चलता रहा. जनजातियों में संतालों का विद्रोह सबसे जबरदस्त था. अंग्रेजों का आधिपत्य 1756 से ही हो चुका था, किंतु यहां की जनजातियों पर धीरे-धीरे शोषण और अत्याचार का शिकंजा कसता गया.

1850 तक यहां चप्पे-चप्पे में शोषण छा चुका था. संताल भी इसके शिकार हो गये. ऐसे तो संताल बहुल ही भोले-भाले और शांति प्रिय होते हैं. महाजनों का शोषण व अत्याचार बढ़ने लगा. वे जमीन भी हड़पने लगे. अंग्रेजों ने मालगुजारी बढ़ा दी. लगान नहीं देने पर इनकी संपत्ति की कुर्की-जब्ती व नीलामी होने लगी. तो इनके मन में आक्रोश पनपा और धैर्य टूटा. इसके बाद 30 जून 1855 में हूल क्रांति का आगाज हुआ. संताल परगना के भोगनाडीह में सिदो-कान्हू मुर्मू की अगुवाई में विशाल रैली हुई.

इस रैली से जल, जंगल व जमीन को छोड़ने के नारे की गूंज उठी. इसे हम संताल हूल व हूल क्रांति दिवस के नाम से जानते हैं. आइये संताल हूल को साहित्यकारों की नजर से देखते हैं. साथ ही वर्तमान समय में संताल हूल की प्रांसांगिकता क्या है, उसे जानते हैं. साहित्यकार गणेश ठाकुर हांसदा ने संताल हूल से प्रभावित होकर भोगनाडीह रेया: डाही रे नामक एक पुस्तक भी लिखा है. इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी नयी दिल्ली की ओर से वर्ष 2014 में सम्मानित किया गया. सिदो-कान्हू, चांद-भैरव समेत अनगिनत शहीदों के सपनों को साहित्यकारों की नजर से देखने व समझने का प्रयास करती रिपोर्ट.

आज तक नहीं बदली सूरत : हूल क्रांति का मूल उद्देश्य जल, जंगल व जमीन की रक्षा था. सिदो-कान्हू, चांद-भैरव समेत अनगिनत लोगों ने इसके रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन वर्तमान समय का जो परिदृश्य है. वह अब भी ज्यों का त्यों है. संताल हूल के परिणाम स्वरूप एसपीटी एक्ट बन गया, ताकि जल, जंगल व जमीन की रक्षा हो सके. लेकिन धरातल की हकीकत अभी किसी से छुपी नहीं है. अभी भी आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की कोशिश जारी है. घर से बेघर होने के भी कई मामले सामने आ चुके हैं. हूल क्रांति दिवस अभी भी लोगों में ऊर्जा भरने का काम करता है, लेकिन हूल क्रांति से सींचा हुआ कानून केवल फाइलों की शोभा बढ़ा रहा है. एसपीटी एक्ट को अमलीजामा पहनाने की जरूरत है.

उनके सपनों को मिलकर करें साकार : सिदो-कान्हू, चांद-भैरव समेत अन्य वीर महापुरुषों ने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सपना देखा था. वे चाहते थे कि आने वाली पीढ़ी किसी तरह का दुख-तकलीफ नहीं झेले. सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक, हर तरह से जीवन में शांति रहे. उनका सपना अभी भी अधूरा ही है. फूट डालो-राज करो ने जनजातीय समुदाय को कई टुकडों में बांट दिया है. अपने पुरोधा व वीर महापुरुषों के सपने को सकार करने के लिए हमें एकजुट होना होगा. एकजुटता से ही फिर हूल क्रांति का आगाज हो सकेगा. संतालों की एकजुटता के आगे ब्रिटिश शासन-प्रशासन तक को पीछे हटना पड़ा था. एकजुटता में ही ताकत है, अलगाव में नहीं.

हर क्षेत्र में काबिज होने की है जरूरत : जल, जंगल व जमीन के रक्षार्थ महापुरुषों ने अपने प्राणों तक की आहुति दी. क्योंकि उन्हें मालूम था, जीवन जीने लायक बनाने के लिए जल, जंगल व जमीन ही केंद्र बिंदु है. वर्तमान समय में उसी के इर्द-गिर्द रोजी-रोजगार, तकनीकी उन्नति, कारोबार आदि जीवन शैली है. हमें जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा करते हुए आधुनिक शिक्षा, रोजी-रोजगार व कारोबार हर क्षेत्र में काबिज होने की जरूरत है, तभी पूर्वजों के सपनों को धरातल पर उतारा जा सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें