हजारीबाग. विनोबा भावे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में चांसलर लेक्चर सीरीज के तहत बुधवार को संगोष्ठी सह काव्य पाठ का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का विषय ””””हमारा समय और कविता की भूमिका”””” था. मौके पर विषय विशेषज्ञ आलोचक, कवि व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि कविता आत्मबोध व आत्मसंस्कृति से जोड़ती है. साहित्य की अन्य सभी विधाएं कविता के भीतर से अंकुरित होती हैं. कविता समय के सत्य को उद्घाटित करते हुए मनुष्य की मुक्ति का साधन बनती है. कविता ने हाशिये के समाज की आवाज को न सिर्फ अभिव्यक्ति दी, बल्कि उपेक्षित समाज की जागृति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. कविता बुनियादी तौर पर संवादधर्मी विधा रही है. कविता सामूहिकता में संवाद करती है. समाज में जितने कवि रहेंगे, तनाव उतना ही कम होगा. वक्तव्य के साथ-साथ उन्होंने अपनी नवरचित काव्य संग्रह ””””झुकना किसी को रोकना है”””” से कई कविताओं का वाचन किया. वहीं डॉ केदार सिंह ने काव्य की प्रासंगिकता पर वृत्तचित्र प्रस्तुत किया. डॉ कृष्ण कुमार गुप्ता ने कहा कि समय के साथ कविता की भूमिका बदलती रहनी चाहिए, लेकिन उसके मूल में मनुष्य एवं मनुष्यता लक्षित होनी चाहिए. प्राध्यापक डॉ सुबोध कुमार सिंह ने साहित्य और समय के अंतरसंबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्य समय का, समय के लिए व समय के द्वारा गढ़ी हुई घटना है. स्वागत भाषण विभागीय प्राध्यापक डॉ सुनील कुमार दुबे, अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ कृष्ण कुमार गुप्ता व संचालन डॉ राजू राम ने किया. इस अवसर पर डॉ सत्यनारायण टंडन (सेवानिवृत्त प्राध्यापक बीबीएमकेयू), डॉ बलदेव राम (प्राचार्य बरकट्ठा कॉलेज), डॉ जयप्रकाश रविदास (प्राचार्य बरही कॉलेज) सहित कई शोधार्थी उपस्थित थे.
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