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स्वच्छ एवं ईमानदार सरकार के लिए खुद में बदलाव की जरूरत

हजारीबाग : समाज जैसा होगा, सरकार भी वैसा ही होगा. आज समाज की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं. पैसे को अहमियत दिया जा रहा है. इस कारण विधायिका व कार्यपालिका में गिरावट आयी है. संविधान के चौथे स्तंभ पत्रकारिता में भी गिरावट आयी है. इसे बदलने के लिए समाज में बदलाव जरूरी है. समाज में बदलाव […]

हजारीबाग : समाज जैसा होगा, सरकार भी वैसा ही होगा. आज समाज की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं. पैसे को अहमियत दिया जा रहा है. इस कारण विधायिका व कार्यपालिका में गिरावट आयी है. संविधान के चौथे स्तंभ पत्रकारिता में भी गिरावट आयी है. इसे बदलने के लिए समाज में बदलाव जरूरी है.
समाज में बदलाव लाने के लिए स्वयं में बदलाव की जरूरत है. समाज से ही सरकार है. स्वच्छ और ईमानदार समाज रहने से स्वच्छ एवं ईमानदार सरकार होगी. सरकार का काम समाज को सुविधा एवं संसाधन मुहैया कराना है. देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है. लोकतंत्र से समाज में बदलाव नहीं आयेगा, बल्कि स्वच्छ एवं ईमानदार समाज होने से सरकार भी स्वच्छ एवं ईमानदार होगी. इसके लिए समाज एवं सरकार को पूरक बन कर काम करना होगा.
कोनार महोत्सव के अंतिम दिन शनिवार को विभावि सभागार में बौद्धिक संगोष्ठी हुई. संगोष्ठी का विषय समाज, सरकार एवं संभावनाएं था. कार्यक्रम का उदघाटन बतौर मुख्य अतिथि झारखंड महिला आयोग की अध्यक्ष महुआ माजी, डीसी मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हरिनारायण सिंह, अनुज कुमार सिन्हा, बैजनाथ मिश्र, अनुपम शशांक, डॉ शिवदयाल सिंह ने संयुक्त रूप से दीप जला कर किया.
मौके पर महुआ माजी ने कहा कि सरकारी पदाधिकारी अपनी ड्यूटी अच्छी तरह से यदि निभायें, अपने कामों पर तटस्थ रहेंगे, तो समाज के लिए बहुत कुछ कर सकेंगे. सरकारी विभागों में आपसी तालमेल नहीं है, जिस कारण एक काम को करने के लिए कई बार तोड़फोड़ कर दोबारा कार्य करना पड़ता है.
इससे पैसे का नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि झारखंड में सरोगेट मदर एवं सिंगल मदर जैसी समस्याओं को नहीं आने दें. इसके लिए समाज को जागरूक करना जरूरी है. प्रखंड स्तर पर महिला कॉलेज और गांवों को शहर से जोड़ना जरूरी है. इससे शिक्षा एवं रोजगार बढ़ेगा. शिक्षा से ही महिला प्रताड़ना जैसी समस्याओं से निबटा जा सकता है.
सरकार और समाज एक दूसरे के पूरक बनें: डीसी मुकेश कुमार ने कहा कि समाज और सरकार एक दूसरे का कैसे पूरक बनें, इस पर विचार जरूरी है. सरकार स्वतंत्र सत्ता नहीं है, जबकि समाज स्वतंत्र सत्ता है. हम सभी महान लोकतांत्रिक देश का हिस्सा हैं. लोकतांत्रिक तरीके के प्रयोग के लिए पूर्वजों ने लड़ाई लड़ी और कुर्बानियां दी है, तब हम आजाद होकर जी रहे हैं.
लगातार प्रयास से बदलाव लाया जा सकता है. जब तक विचार सार्वजनिक एवं सामूहिक नहीं होंगे, तब तक अच्छाई उभर कर नहीं आयेंगे. समाज हमेशा से प्रश्न करता रहा है. इस कारण बदलाव देखने को मिलता है. समाज ने सरकार को हमेशा नैतिक बल देने का काम किया है. हम लोग देश को सिंगापुर बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए समय की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है. हमें इस कार्य में अभी से लग जाना चाहिये. हम जब ऐसा करेंगे, तो समय से पहले अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं.
आज पैसे का महत्व बढ़ गया है
वरिष्ठ पत्रकार हरिनारायण सिंह ने कहा कि व्यक्ति समाज का अंग है. हम समाज को क्या दे रहे हैं, इसकी चिंता जरूरी है. लोकतंत्र की विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में गिरावट आयी है.
साथ ही पत्रकारिता में भी गिरावट आयी है. आज पैसों का महत्व बढ़ गया है. शासन सुविधा देने का साधन बन गया है. बावजूद समाज सहनशील है.पत्रकारिता जब तक पैसेवालों का गुलाम बनी रहेगी, तब तक समाज में सुधार नहीं होगा. समाज में बदलाव से ही सुधार होगा.
लोकतंत्र सामाजिक परिवर्तन का हथियार नहीं
वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र ने कहा कि हम जैसे होंगे, वैसी ही सरकार होगी. हम जातिवाद की बात करेंगे, तो जातिवादी सरकार होगी. हम भ्रष्टाचारी को चुनेंगे, तो सरकार में भ्रष्ट लोग होंगे. उन्होंने कहा कि जब तक आप अच्छे लोगों का ईमानदारी से चयन नहीं करेंगे, तब तक एक अच्छी सरकार और ईमानदार सरकार नहीं बनेगी. मीडिया भी चुनाव में ईमानदारी नहीं बरतता है.
समाज को व्यक्ति बनाता है. लोकतंत्र सामाजिक परिवर्तन का हथियार नहीं है, बल्कि लोकतंत्र समाज को उद्देश्यों को पाने का हथियार है. हमने आजादी की लड़ाई लड़ी, तो हमें आजादी मिली.अब हमें समाज सुधार के लिए आगे आना चाहिए. समाज में सुधार होगा, तो सरकार मजबूत होगी.
आज समाज में बदलाव जरूरी है
वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा ने कहा कि हमलोग यहां से संकल्प लेकर निकलें कि हम सब मिल कर इस समाज को सुदृढ़ करेंगे. समाज में संभावनाएं हमेशा बनी रहेंगी. पैसों के कारण विधायिका, कार्यपालिका और चौथा स्तंभ पत्रकारिता में भी गिरावट आयी है. उन्होंने न्यायाधीश के हवाले से बताया कि न्याय पालिका में भी गिरावट आयी है. पत्रकारिता में ईमानदारी की कमी आयी है. कुछ ईमानदार लोगों के चलते ही सभी चीजें चल रही हैं.
हमें सोचना चाहिए कि हम क्या लेकर आये हैं और क्या लेकर जायेंगे. आज समाज की प्राथमिकताएं बदल गयी हैं. हम सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं. पहले गुरु-शिष्य, डॉक्टर-मरीज, बुजुर्ग-पुत्र का संबंध अच्छा था. अब यह संबंध बिखर रहा है. इन्होंने हजारीबाग के बारे में कहा कि हजारीबाग की जलवायु अच्छी है. यहां एजुकेशन हब एवं पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये. इन्होंने सूरत शहर का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले यह शहर काफी गंदा हुआ करता था, लेकिन वहां के लोगों के प्रयास से आज सूरत साफ सुथरे शहर के रूप में जाना जाता है.
मनुष्य आज वस्तु बन कर रह गया है
मार्खम कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ शिवदयाल सिंह ने वैश्वीकरण को तथाकथित बताते हुए कहा कि हमारे पुराने ऋषियों ने पूरे धरती को ही माता माना है. पुराने समाज में सभी धर्मावलंबी एक साथ थे.
आज राजनीतिक कारणों से समाज बंटा हुआ है.आज मनुष्य स्वार्थ में शामिल है. मात्र एक वस्तु बन कर रह गया हृै. समाज का एक-एक व्यक्ति काम करे, तो समाज और सरकार के सभी काम आसानी से होंगे. वर्तमान परिस्थिति पर कहा कि लोहे की फैक्ट्री में आवाजें बहुत होती हैं, लेकिन वहां से उपयोगी वस्तु बन कर बाहर निकलता है.
कार्यक्रम का संचालन संजय तिवारी ने किया. इसमें हजारीबाग के गणमान्य लोग, विभावि पदाधिकारी, शिक्षक एवं काफी संख्या में विद्या़र्थी मौजूद थे. कार्यक्रम में डीडीसी राजेश कुमार, डीआरडीए निदेशक एसपी प्रभाकर ,डीपीओ अजय कुमार समेत अन्य लोग शामिल थे.धन्यवाद ज्ञापन सीआपीएफ कमांडेंट मुन्ना सिंह ने किया. मुख्य अतिथि एवं अखबार के संपादकों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया.
छोटे छोटे सुधार से बड़ा परिवर्तन संभव
द पायोनियर के संपादक अनुपम शशांक ने कहा कि छोटे-छोटे सुधार से बड़ा परिवर्तन हो सकता है.भारत लोकतांत्रिक देश है. पढ़े लिखे लोग आगे आयेंगे, तो विधायिका और कार्यपालिका में सुधार आयेगा. इन्होंने उपायुक्त से कहा कि पैदल चलनेवालों को दाहिनी तरफ चलने के लिए प्रेरित करें. इससे पैदल चलनेवाले दुर्घटना से बचेंगे. साइकिल-ट्रैक्टर के पिछले हिस्से में रिफ्लेक्टर नहीं होने से ये लोग भी रात में दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं.
जरूरत के हिसाब से समस्याओं का सर्वेक्षण
विभावि कुलपति प्रो गुरदीप सिंह ने कहा कि समाज की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने आसपास के क्षेत्र को कैसे बना कर रखें. संभावनाओं की तलाश जरूरी है. क्षेत्र में जरूरत के हिसाब से समस्याओं का सर्वेक्षण करें.
हमें खुद में संभावनाएं तलाशनी होगी
विभावि प्रतिकुलपति प्रो मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने कहा कि जब तक संभावनाएं हैं, तब तक हम जीवित हैं. संभावनाएं समाप्त होंगी, तो हमारा कोई अस्तित्व नहीं है. हमें खुद में संभावना तलाशनी होगी. इससे समाज और सरकार दोनों बदलेगी.

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