हजारीबाग : शांति देवी सदर प्रखंड की चुटियारो पंचायत की मुखिया हैं. वह एससी कोटे में आती है. पंचायत प्रतिनिधि बनने के लिए यह आरक्षण 243-घ के तहत प्राप्त है. शांति दो बार से मुखिया पद को सुशोभित कर रही है, वह सिर्फ साक्षर है, बोलने में काफी संकोच करती है. लेकिन जबसे मुखिया बनी है, उनके अंदर सामाजिक उत्तरदायित्व का भाव जगा है.
उनसे यह पूछे जाने पर कि आप मुखिया पद के लिए क्यों चुनी गयी. पहली बार मुखिया बनने के बाद आप कैसा महसूस कर रही थी. उस पर उन्होंने कहा कि इस बार मुखिया का पद अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित था, इसलिए खड़ी हुई. मैं एससी कोटे में आती हूं.
यह अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त हुआ. पहली बार अपने संवैधानिक अधिकारों के बारे में जाना. पंचायत के अंदर डुमर, सरौनीखुर्द, सरौनी कला व चुटियारो गांव आते हैं. मैं सभी गांवों में जाने लगी. कहां-कहां सड़क, पुल-पुलिया नहीं है, स्कूल में बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलता है कि नहीं, बिजली, पानी की समस्या के प्रति अपनी जबावदेही समझने लगी हूं.
वृद्धों को कंबल वितरण करते समय उनकी आंखों में आशा की किरण चमकती हुए दिखती है. कई विधवा, वृद्ध व नि:शक्त लोगों का दुख दर्द सुन कर उनको पेंशन दिलाने में मदद करती हूं. मैं समझती हूं कि सामाजिक विकास व लोगों की सेवा करने का यह मौका मुझे संविधान ने दिया. लोगों के बीच उठते बैठते समझा.
मैं हर कार्यक्रम में भाग लेती हूं. वहां हमें लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. मैं अपनी ही तरह पंचायत की औरतों को भी उनकी स्वतंत्रता और अधिकार के प्रति जागरूक रखने की सलाह देती हूं. अब मेरा आत्मबल मजबूत हुआ है. पति के पहले समाज में मेरी खोज होती है तो उस समय मैं अपने नारी-शक्ति के एहसास होता है.
पहले समाज के महिला-पुरुष कहते थे कि यह तो उतनी पढ़ी-लिखी नहीं है. कभी जाति को लेकर उनका आत्मविश्वास इस रूप में कम दिखायी पड़ता कि ये क्या काम कर पायेगी. लेकिन पंचायत में रहनेवाली सभी जातियों की धारणाएं टूट गयी. अब तो कहते है शांति देवी ही ठीक है. उसकी जगह कोई पुरुष होता, तो काम कराने में परेशानी होती. दूसरी मैं घर में रहती हूं. आसानी से लोगों को मिल जाती है.
मैं दलित समाज की महिला होकर मुखिया बनने पर गर्व महसूस कर रही हूं. सभी की सेवा इस तरह करती रहूंगी. मैं अपनी संविधान निर्माताओं विशेष कर बाबा साहेब आंबेडकर को दिल से धन्यवाद देती हूं.