जगरनाथ पासवान, गुमला श्रमदान कर सड़क बनाकर ग्रामीणों ने प्रशासन को आइना दिखाये. शासन-प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहे ग्रामीण खुद के जेब से पैसे लगाकर सड़क को चलने लायक बनाये. ग्रामीण हर साल गांव में आपस में पैसा चंदा करते हैं. बरसात में खराब हो गयी सड़क को फिर से मरम्मत करते हैं. ग्रामीण सड़क की मरम्मत में पैसा लगाने के साथ ही श्रमदान भी करते हैं. यह सिलसिला विगत कई सालों से चला आ रहा है. इसके बाद भी प्रशासन उक्त सड़क का पक्कीकरण नहीं करा रहा है. हम बात कर रहे हैं, घोर उग्रवाद प्रभावित चैनपुर प्रखंड के मालम नवाटोली गांव की सड़क की. यह सड़क मालम नवाटोली, मालम, तिगावल व खंभनटोली के करीब एक हजार आबादी की मुख्य सड़क है. यह सड़क करीब दो किमी लंबी है. सड़क पर कहीं गड्ढा है, तो कहीं जलजमाव की समस्या है. लेकिन आजादी के दशकों गुजर जाने के बाद भी अब तक गांव के लोगों को पक्की सड़क मय्यसर नहीं सकी है. हालांकि गांव के लोग पंचायत के जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासन, विधायक व सांसद तक से सड़क बनवाने की गुहार लगा चुके हैं. लेकिन अब तक गांव की सड़क कच्ची ही है. बारिश के मौसम में यह सड़ हर साल मालम में ग्रामसभा में सड़क बनाने का प्रस्ताव पारित होता है. सड़क बनाने के लिए पंचायत के जनप्रतिनिधि, प्रखंड कार्यालय से लेकर जिला कार्यालय तक और गुमला विधायक को अनेकों बार आवेदन दे चुके हैं. लेकिन अब तक सड़क नहीं बनी है. माइकल तिग्गा, ग्रामीण हम भारत के नागरीक होने के नाते भारतीय संविधान के तहत हर चुनाव में भाग लेते हैं. वोट देते हैं और सांसद, विधायक व गांव की सरकार का चुनाव करते हैं. ताकि वे गांव की समस्या को दूर कर सके. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद सभी भूल जाते हैं. दयामनी कुजूर, ग्रामीण देश की आजादी के दशकों बीत जाने के बाद भी अब तक गांव की मुख्य पथ की स्थिति खराब है. गांव की सड़क को मिट्टी-मोरम से लगभग 30 साल पहले बनाया गया था. हम आज भी उसी प्रकार से सड़क की मरम्मत करने को विवश हैं. प्रशासन या सरकार सड़क को बनवा दें. रूबिन बेक, ग्रामीण सरकार, प्रशासन व जन प्रतिनिधियों से सड़क को ढंग से बनवाने की मांग करते हैं. लेकिन सड़क नहीं बन रही है. सड़क ठीक नहीं होने के कारण गांव का विकास नहीं हो पा रहा है. हमारी जिंदगी चाहे जैसे भी गुजरी. लेकिन हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे विकास की मुख्य धारा से जुड़े. जोसेफ बेक, ग्रामीण
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