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गुमला शहर के घाटो बगीचा में जुटते थे पहलवान, होती थी कुश्ती, रामनवमी अखाड़ा का इतिहास 101 साल पुराना

गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला शहर का सबसे पुराना रामनवमी अखाड़ा घाटो बगीचा है. इस अखाड़ा का इतिहास 101 साल पुराना है. 1920 ईस्वी में घाटो बगीचा में रामनवमी पूजा की शुरूआत की गयी थी. गदा से खेल होता था. पहलवान जुटते थे. कुश्ती होती थी. देखने वालों की भीड़ जुटती थी. उस जमाने में एकमात्र अखाड़ा घाटो बगीचा में होने के कारण लोग यहां दूर-दूर से आते थे. उस समय गुमला शहर के बाजार टाड़ में गौ मेला लगता था. कई राज्यों के लोग गुमला में गाय बेचने व खरीदने जुटते थे.

गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला शहर का सबसे पुराना रामनवमी अखाड़ा घाटो बगीचा है. इस अखाड़ा का इतिहास 101 साल पुराना है. 1920 ईस्वी में घाटो बगीचा में रामनवमी पूजा की शुरूआत की गयी थी. गदा से खेल होता था. पहलवान जुटते थे. कुश्ती होती थी. देखने वालों की भीड़ जुटती थी. उस जमाने में एकमात्र अखाड़ा घाटो बगीचा में होने के कारण लोग यहां दूर-दूर से आते थे. उस समय गुमला शहर के बाजार टाड़ में गौ मेला लगता था. कई राज्यों के लोग गुमला में गाय बेचने व खरीदने जुटते थे.

उस जमाने में गाड़ी नहीं चलती थी. लोग पैदल आते थे. गाय बेचने व खरीदने के बाद रात को गुमला में ही विश्राम करते थे. इसलिए थकान दूर करने, मनोरंजन व धार्मिक आस्था को लेकर घाटो बगीचा में अखाड़ा की शुरूआत की गयी थी. तब से यह अखाड़ा चल रहा है. हालांकि अब गदा से खेल नहीं होता. न ही पहलवान जुटते हैं. गदा की जगह लाठी, डंडा, बलुवा, भाला, तलवार ले लिया है.

स्व राधाकृष्ण साव सबसे बड़े पहलवान

बताया जाता है कि घाटो बगीचा में स्व राधाकृष्ण साव, स्व रामचन्द्र साव, स्व रामवृक्ष साव, स्व खदेरन मिस्त्री, स्व बिष्टु महंती, स्व गुलसहाय भुइयां ने रामनवमी अखाड़ा की नींव रखे थे. मशाल जलाकर खेल हुआ करता था. उस समय घाटो बगीचा के सबसे बड़े पहलवान राधाकृष्ण थे, जो दूसरे राज्यों व जिलों से आने वाले पहलवानों से लड़ते थे. मनोरंजन के मकसद से मिटटी के धूल पर जब पहलवान लड़ते थे तो लोग उन्हें देखने के लिए भीड़ लगा देते थे.

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1920 ईस्वी में मंदिर व कुआं की स्थापना हुई

घाटो बगीचा के रामनवमी अखाड़ा का जो इतिहास है. उसी इतिहास से घाटो बगीचा के मंदिर व कुआं का भी इतिहास जुड़ा हुआ है. 1920 ईस्वी में जब रामनवमी का अखाड़ा सजने लगी तो वहीं पास एक चबूतरा बनाया गया. चबूतरा में भगवान हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गयी. बड़ाइक देवनंदन सिंह ने मंदिर बनाने के लिए जमीन दिये. कुआं खोदने में स्व टोहन बाबू ने मदद किया था. घाटो बगीचा के लोगों ने कहा कि मंदिर बन गया. अखाड़ा लगने लगी है. पानी की दिक्कत होती है. इसपर टोहन बाबू ने लोगों की मांग पर घाटो बगीचा मंदिर के सामने कुआं खुदवाया था. यह कुआं आज भी जीवित है.

जुलूस पहले घाटो बगीचा में आती है

घाटो बगीचा में आज घनी आबादी है. परंतु 1920 के आसपास कुछ ही घर थे. मंदिर के समीप बड़ा मैदान हुआ करता था. अब वहां अनगिनत घर बन गये हैं. अखाड़ा के लिए कुछ जगह बचा हुआ है. समय के साथ रामनवमी अखाड़ा का लाइसेंस भी बना. पहले जगदीश केशरी व सत्यनारायण प्रसाद के नाम से अखाड़ा का लाइसेंस था. परंतु इनके वृद्ध होने के बाद अखाड़ा का लाइसेंस गोपाम केशरी के नाम पर है. परंपरा के अनुसार रामनवमी का जुलूस पहले घाटो बगीचा पहुंचता है. इसके बाद ही गुमला शहर में भ्रमण करती है. यह परंपरा आज भी जीवित है. हालांकि दो वर्षो से कोरोना के कारण यहां सिर्फ अखाड़ा पूजा हो रही है. परंतु दूसरे अखाड़ा के लोग यहां परंपरा निभाने के लिए झंडा लेकर आते हैं.

जगदीश केशरी ने कहा

71 वर्षीय जगदीश केशरी ने कहा कि 1920 में घाटो बगीचा में चबूतरा बना. इसके बाद 1939 में मंदिर की स्थापना हुई. आज जरूर घाटो बगीचा घनी आबादी हो गयी है. परंतु इस मुहल्ले से गुमला के कई इतिहास जुड़ा हुआ है. इसी में रामनवमी अखाड़ा का है. हमारे दादा परदादा ने जो परंपरा शुरू की थी. घाटो बगीचा में जीवित है. आज भी यहां अखाड़ा पूजा होती है.

Posted By: Amlesh Nandan.

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