गुमला. शारदीय नवरात्र सह श्री दुर्गा पूजनोत्सव के छठे दिन शनिवार को मां दुर्गा की पंचम रूप स्कंद माता की पूजा-अर्चना की गयी. भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है. भगवान स्कंद जी बाल रूप में माता की गोद में बैठे होते हैं. श्रद्धालुओं ने स्कंदमाता की पूजा कर आरोग्य, बुद्धिमता, ज्ञान, सुख, शांति व समृद्धि की कामना की. सूर्य मंदिर चेटर गुमला के पुजारी विकास मिश्रा बबलू बताते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार स्कंदमाता की पूजा करने से आरोग्य, बुद्धिमत्ता व ज्ञान की प्राप्ति होती है. संतान सुख व रोग मुक्ति के लिए स्कंद माता की पूजा विशेष फलदाहिनी मानी जाती है. देवी भागवत कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस घोर तप करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि मेरी मृत्यु शिवजी के संतान से ही हो. वह ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीनों लोक में शासन करने लगा. तब देवताओं ने माता जगत जननी से प्रार्थना की. इस तारकासुर से हम सब की रक्षा कीजिये. तब माता ने स्कंद माता का रूप धारण किया और अपने पुत्र स्कंद अर्थात कार्तिकेय को युद्ध के लिए तैयार करने लगी. स्कंदमाता से युद्ध की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कार्तिकेय जी ने तारकासुर का संहार किया. मां स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख व संतान की प्रगति होती हैं. उन्होंने कहा कि माताएं उनसे करुणा व मातृत्व की भावना की शिक्षा ग्रहण करें. बच्चों को भौतिक व आध्यात्मिक ज्ञान देना सभी माता का कर्तव्य है. वहीं आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी दिन रविवार (28 सितंबर) को प्रात: सात बजे से 10 बजे तक कल्पारंभ तथा संध्या छह से नौ बजे तक के बीच में श्री दुर्गा जी का बोधन, अधिवास व आमंत्रण किया जायेगा और मां दुर्गा के षष्ठम रूप मां कात्यायनी की पूजा की जायेगी.
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