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जंगलों तक सिमटी नक्सल प्रभावित गुमला के लालमाटी गांव के ग्रामीणों की जिंदगी, नहीं ले रहा कोई सुध

गुमला के नक्सल प्रभावित लालमाटी गांव के ग्रामीणों की सुध कोई नहीं ले रहा है. इस गांव में कोरा और मुंडा जनजाति के लोग निवास करते हैं. इन ग्रामीणों की जिंदगी जंगलों तक ही सिमटी है. वहीं, ये ग्रामीण आज भी लकड़ी और दोना-पत्तल बेचकर आजीविका चलाने को मजबूर हैं.

Jharkhand news: गुमला जिला अंतर्गत रायडीह प्रखंड के ऊपर खटंगा पंचायत स्थित लालमाटी गांव, जो घोर घने जंगल एवं पहाड़ पर बसा है. दुर्गम इलाकों में से एक है. अभी तक इस गांव को सिर्फ नक्सल इलाका के नाम से जाना जाता है. सरकार और प्रशासन ने कभी गांव की छवि बदलने का प्रयास नहीं किया. ना ही गांव के विकास की कोई प्लानिंग बनी. आज भी इस गांव में रहने वाले 30 परिवारों की जिंदगी गांवों तक सिमटी हुई है. इसमें 15 परिवार कोरवा जनजाति के है, जो विलुप्ति के कगार पर है. वहीं, 15 मुंडा जनजाति भी हैं जो 200 वर्षों से इस जंगल में रहते आ रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि अगर यह जंगल नहीं रहता, तो हम कब के मर जाते. जंगल से सूखी लकड़ी और दोना पत्तल बाजारों में बेचकर जीविका चलाते हैं. गांव में रोजगार का साधन नहीं है. सिंचाई नहीं है. बरसात में धान, गोंदली, मड़ुवा, जटंगी की खेती करते हैं, जो कुछ महीने खाने के लिए होता है. जंगली कंदा भी इस गांव के लोगों का भोजन है.

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सड़क इस गांव के विकास में बाधक

लालमाटी गांव रायडीह प्रखंड में है. रास्ता नहीं है. लुरू गांव से होकर पैदल पहाड़ के ऊपर तीन किमी चढ़ना पड़ता है. बाइक से अगर गांव जानी है, तो चैनपुर प्रखंड के सोकराहातू गांव से होकर जाना पड़ता है. यह सड़क भी खतरनाक है. लेकिन, सावधानी से सफर करने से गांव तक पहुंच सकते हैं. गांव के लोग सोकराहातू के रास्ते से साइकिल से सफर करते हैं.

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खटिया में लाद मरीज को पहाड़ से उतारते हैं

सड़क नहीं है. इसलिए गाड़ी गांव तक नहीं जाती है. मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है. अगर कोई बीमार हो गया. गर्भवती है, तो उसे खटिया में लादकर पहाड़ से पैदल उतारा जाता है. चार-पांच किमी पैदल चलने के बाद मुख्य सड़क पहुंचकर ऑटो से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है. ग्रामीण कहते हैं कि पहाड़ से उतरने में कई लोगों की मौत हो चुकी है.

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बूथ छह किमी दूर, हर घर से वोट देते हैं

लालमाटी गांव से लुरू गांव की दूरी करीब छह किमी है. लुरू गांव में हर चुनाव में बूथ बनता है, लेकिन लालमाटी गांव के लोग छह किमी पैदल चलकर हर चुनाव में वोट देते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि उम्मीदवार की जगह कोई गांव का ही एजेंट रहता है. सभी वोटरों के लिए चना, गुड़ या चूड़ा की व्यवस्था कर देता है. वोट देने के बाद यही खाने के लिए मिलता है.

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लालमाटी गांव की ग्रामीणों को सुनिए

ग्रामीण विमल कोरवा कहते हैं कि हमरे मन कर जीवन जंगल तक सिमट कर रह जाहे. सरकार और प्रशासन से अनुरोध आहे. हमारे मन कर गांव कर सड़क के बनवा देवा. हमरे मन के काफी दु:ख तकलीफ आहे. मुश्किल में जिया थी. वहीं, ग्रामीण महेंद्र कोरवा ने कहा कि प्रशासन द्वारा गांव में पहुंचा कर राशन नहीं दिया जाता है. हमें राशन लाने के लिए ऊपर खटंगा जाना पड़ता है. रास्ता नहीं है. पहाड़ी और जंगली रास्ता करीब छह किमी पैदल चलना पड़ता है. बड़ी मुश्किल है.

वृद्धावस्था पेंशन की लगा रही गुहार

गांव की छटनी कोरवाईन कहती हैं कि गांव कर बूढ़ा-बूढ़ी मन के वृद्धावस्था पेंशन नी मिला थे. हमरे मन कई बार फार्म भी भइर आही, लेकिन प्रशासन व नेता मन हमरे मन के कोयो मदद नी करेना. बाबू मन हमरे मन के मदद करी. वहीं, सनियारो कोरवाईन कहती हैं कि गांव में रोजगार का कोई साधन नहीं है. जंगली से सूखी लकड़ी और दोना-पत्तल बाजार लेकर बेचते हैं. उसी से जीविका चलता है. गांव से गुमला की दूरी 25 किमी है. पथरीली सड़कों से होकर गुमला जाते हैं.

सड़क नहीं होने के कारण बच्चे स्कूल जाने से हो रहे वंचित

शिक्षक नारायण सिंह कहते हैं कि गांव में एक से पांच क्लास तक पढ़ाई होती है. पांचवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद कई बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं क्योंकि गांव चारों तरफ जंगल और पहाड़ से घिरा है. रास्ता नहीं रहने के कारण बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते. वहीं, दिलमति कुमारी कहती है कि मुंडा बस्ती में एक जलमीनार दो साल पहले बना था. वह खराब हो गया. चुआं का पानी पीते हैं. पांचवीं कक्षा के बाद हमलोग पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि रायडीह व सोकराहातू स्कूल जाने के लिए सड़क नहीं है.

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लालमाटी गांव की प्रमुख समस्या

– गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है
– राशन लाने पांच किमी दूर जाते हैं
– बिरसा आवास किसी को नहीं मिला
– किसी के घर में शौचालय नहीं बना है
– गांव में स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं
– पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं
– लालमाटी मुंडा बस्ती का जलमीनार खराब.

रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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