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कभी ट्रैक पर फर्राटेदार दौड़ लगाने वाले गुमला के नेशनल एथलीट कार्तिक आज मजदूरी करने को बेबस, जानें कैसे हुई ऐसी हालत

Jharkhand News, Gumla News : गुमला की धरती ने कई स्टेट एवं नेशनल खिलाड़ी देश को दिये हैं. इन्हीं में से एक हैं गुमला निवासी 54 वर्षीय कार्तिक उरांव. इन्होंने वर्ष 1983 से 1986 में एथलेक्टिस चैंपियनशिप में 4 बार गोल्ड मेडल जीत कर न केवल गुमला, बल्कि पूरे राज्य का गौरव बढ़ाये. लेकिन, वर्तमान में सरकार के उदासीन रवैये के कारण नेशनल एथलीट कार्तिक मजदूरी कर अपने परिवार का जीविका चलाने को विवश हैं.

Jharkhand News, Gumla News, गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला की धरती ने कई स्टेट एवं नेशनल खिलाड़ी देश को दिये हैं. इन्हीं में से एक हैं गुमला निवासी 54 वर्षीय कार्तिक उरांव. इन्होंने वर्ष 1983 से 1986 में एथलेक्टिस चैंपियनशिप में 4 बार गोल्ड मेडल जीत कर न केवल गुमला, बल्कि पूरे राज्य का गौरव बढ़ाये. लेकिन, वर्तमान में सरकार के उदासीन रवैये के कारण नेशनल एथलीट कार्तिक मजदूरी कर अपने परिवार का जीविका चलाने को विवश हैं.

नेशनल एथलीट कार्तिक उरांव गुमला के परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम में दैनिक मानदेय पर मजदूरी करते हैं. सुबह- शाम स्टेडियम की देखभाल करते हैं. इसके एवज में उन्हें महीने में 2 हजार रुपये मिलता है. 5 साल पहले तक महीने में एक हजार रुपये मिलता था. बाद में इसे बढ़ा कर 2 हजार और फिर 5 हजार रुपया किया गया, लेकिन कुछ महीनों से प्रशासन ने कार्तिक के मानदेय दोबारा 3 हजार रुपये कम का दिया है.

वर्तमान में 2 हजार रुपये मानदेय मिलता है, जो सरकारी मजदूरी दर से भी कम है. इसी 2 हजार रुपये से उनके परिवार का गुजारा चल रहा है, लेकिन इस खिलाड़ी की ओर न तो जिला प्रशासन और न ही सरकार का कोई ध्यान है. कार्तिक ने कई बार सरकारी नौकरी के लिए प्रशासन से लेकर सरकार को पत्राचार किये, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिला. किसी ने नौकरी दिलाने की पहल नहीं की. इससे थक- हार कर कार्तिक ने अपने सारे सर्टिफिकेट, मेडल व कप जिला खेल विभाग को सौंप दिया है.

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1983 से 1986 तक जीते 4 गोल्ड

वर्ष 1983 से लेकर 1986 तक कार्तिक उरांव की एथलेटिक्स में धाक थी. कार्तिक ने आंध्र प्रदेश में हुए नेशनल स्कूल गेम्स, पंजाब में हुए नेशनल रूरल गेम्स एवं दिल्ली में हुए नेशनल रूरल स्कूल गेम्स में गोल्ड मेडल जीते हैं. जब कार्तिक ने लगातार 4 वर्षों में 4 गोल्ड मेडल जीता, तो उनका गुमला में भव्य स्वागत हुआ था. उस समय गुमला बिहार राज्य में आता था. बिहार के पटना से लेकर गुमला तक कार्तिक की धूम थी. गोल्ड मेडल के अलावा कार्तिक ने जिला एवं राज्य स्तर पर भी कई मेडल जीते हैं.

घर की हालत खराब होने पर छोड़ी एथलेटिक्स

कार्तिक का घर गुमला शहर में है. फिलहाल वह ज्योति संघ के समीप किराये के मकान में रहते हैं. पत्नी एवं 2 बेटी दीपा कुमारी एवं बबली कुमारी हैं. दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. करमटोली में खपरैल घर है. वह स्टेडियम में गेट खोलने एवं बंद करने का काम करते हैं. इसके अलावा जब कभी भी स्टेडियम में कोई कार्यक्रम होता है, तो वे कुर्सी सजाने एवं अधिकारियों को नाश्ता, चाय एवं पानी बांटने का काम करते हैं.

कार्तिक उरांव से जब उनके बारे में पूछा गया, तो वे भावुक हो गये. उन्होंने अपनी पुरानी कहानी बतायी. उन्होंने कहा कि जब तक मैं गोल्ड मेडल जीतता रहा. लोग मेरा स्वागत करते रहे, लेकिन वर्ष 1987 में घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मैं एथलेटिक्स से दूर हो गया. मैंने नौकरी के लिए आवेदन सौंपा था, लेकिन किसी ने मेरी फरियाद नहीं सुनी. उस समय सरवर इमाम गुमला में डीएसओ (जिला खेल पदाधिकारी) थे. वर्ष 1997 में जब स्टेडियम के समीप जिम्नेजियम बना, तो पूर्व डीएसओ की पहल से मुझे दैनिक मानदेय पर काम दिया गया. शुरू में 500 रुपये महीने मजदूरी मिलता था, लेकिन बाद में जिम्नेजियम बंद हो गया. मुझे स्टेडियम की रखवाली की जिम्मेवारी दी गयी.

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Posted By : Samir Ranjan.

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