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झारखंड के गुमला में तीन बच्चे अनाथ, नहीं मिली मदद तो हो सकते हैं मानव तस्करी के शिकार

दोनों की मौत बीमारी से हुई है. मां पिता की मौत के बाद ये तीनों बच्चे अनाथ हो गये. इनकी परवरिश के लिए कोई नहीं है. कुछ माह तक तीनों बच्चों को गुमला के एक आश्रय गृह में रखा गया था. परंतु कोरोना संक्रमण बढ़ने के बाद आठ माह पहले तीनों बच्चों को उनके घर भेज दिया गया. तब से ये तीनों बच्चे टूटे फूटे कच्ची मिट्टी के घर में रह रहे हैं. घर भी जर्जर अवस्था में है. घर के ध्वस्त होने का डर है. परंतु कोई सहारा व आश्रय देने वाला नहीं है. इस कारण ये बच्चे इसी घर में रह रहे हैं.

गुमला : साहब, तीन बच्चे संकट में हैं. तीनों सगे भाई हैं. माता पिता की मौत हो चुकी है. अब ये तीनों भाई अनाथ हैं. अगर, इन बच्चों को मदद नहीं मिली, तो मानव तस्करी का शिकार होने का डर है. हम बात कर रहे हैं बिशुनपुर प्रखंड के हेलता गांव के तीन अनाथ बच्चों की. सचिन उरांव (16 वर्ष), सिलास उरांव (12 वर्ष) व रामविलास उरांव (10 वर्ष) है. इनके पिता बंधन उरांव का पांच साल पहले व मां पिंकी देवी की दो साल पहले निधन हो गया है.

दोनों की मौत बीमारी से हुई है. मां पिता की मौत के बाद ये तीनों बच्चे अनाथ हो गये. इनकी परवरिश के लिए कोई नहीं है. कुछ माह तक तीनों बच्चों को गुमला के एक आश्रय गृह में रखा गया था. परंतु कोरोना संक्रमण बढ़ने के बाद आठ माह पहले तीनों बच्चों को उनके घर भेज दिया गया. तब से ये तीनों बच्चे टूटे फूटे कच्ची मिट्टी के घर में रह रहे हैं. घर भी जर्जर अवस्था में है. घर के ध्वस्त होने का डर है. परंतु कोई सहारा व आश्रय देने वाला नहीं है. इस कारण ये बच्चे इसी घर में रह रहे हैं.

गरीबी व बीमारी ने ली माता-पिता की जान : बंधन उरांव व पिंकी देवी मजदूरी करते थे. हर दिन कमाते थे तो खाते थे. परंतु पांच साल पहले बंधन बीमार हो गया. इलाज में घर का सारा पैसा खर्च हो गया. इसके बाद भी बंधन स्वस्थ नहीं हुए और उनकी मौत हो गयी. पति की मौत के बाद पत्नी पिंकी देवी हताश हो गयी. किसी प्रकार तीन बेटों की परवरिश कर रही थी. परंतु मजदूरी करते हुए वह भी बीमार हो गयी और उसकी भी मौत हो गयी. बच्चों के अनुसार गरीबी व बीमारी ने उनके माता-पिता को उनसे छिन लिया.

दाल, तेल, सब्जी खरीदने के लिए पैसा नहीं :

बच्चों ने बताया कि उनके पिता के नाम से राशन कार्ड बना हुआ है. चावल मिलता है. परंतु दाल, तेल, सब्जी खरीदने व अन्य दैनिक उपयोग के लिए पैसा नहीं है. जिससे उन्हें परेशानी हो रही है. बच्चों ने यह भी बताया कि जब प्रशासन को अनाथ होने की जानकारी मिली थी तो कुछ महीनों के लिए गुमला के आश्रय गृह में रखा गया. परंतु बाद में उन्हें वापस घर भेज दिया गया. गुमला से अपने घर लौटे आठ माह हो गया. आठ माह से किसी प्रकार अपने घर में रह कर जी खा रहे हैं.

मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है :

बच्चों ने बताया कि माता पिता की मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने के लिए प्रखंड कार्यालय में आवेदन दिया है. परंतु अभी तक प्रमाण पत्र नहीं बना है. जिस कारण पारिवारिक लाभ योजना का लाभ नहीं मिल पा रही है.

Posted By : Sameer Oraon

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