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आदर गांव में 1968 से हो रही है दुर्गा पूजा

गांव के ही मुस्लिम छकौड़ी मियां के नाम से निर्गत हुआ था दुर्गा पूजा का लाइसेंस

घाघरा. घाघरा प्रखंड स्थित आदर गांव में दुर्गा पूजा की शुरुआत वर्ष 1968 में हुई थी. आदर में दुर्गा पूजा की शुरुआत सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि आपसी भाईचारे, सौहार्द और सामूहिक प्रयास का परिणाम था. कुमार रवि ने बताया कि उस समय गांव के लोग माता की आराधना के लिए लगभग 10 किमी दूर घाघरा जाया करते थे. सुविधा व साधन नहीं होने से कई लोग पैदल यात्रा करते और उपवास में यह सफर उनके लिए कठिन हो जाता था. इस परेशानी को देखते हुए गांव में दुर्गा पूजा की नींव रखी गयी. आदर गांव के पूर्व मुखिया राजेंद्र प्रसाद गुप्ता अपने साथी मनरखन ठाकुर, बालक राम, नूर खान, छकौड़ी मियां व कालीचरण प्रसाद गुप्ता के साथ बैठक की. बैठक में बालक राम ने सुझाव दिया कि क्यों न गांव में ही दुर्गा पूजा का आयोजन शुरू किया जाये. यह विचार सभी को पसंद आया. मुखिया ने अपने पिता दुर्गा चरण साहू से इस पर चर्चा की. दुर्गा चरण साहू ने कहा पूजा शुरू होने में केवल तीन दिन बचे हैं. इतने कम समय में तैयारी कैसे होगी. लेकिन युवाओं के उत्साह के आगे कठिनाई आसान हो गयी. दुर्गा चरण साहू ने अपना ट्रक दिया और कहा कि रांची मेन रोड स्थित दुर्गाबाड़ी में प्रतिमा मिलेगी, वहां से लेकर आओ. इसके बाद दर्जनों ग्रामीण ट्रक से रांची पहुंचे और 750 रुपये में माता की प्रतिमा खरीद कर आदर लाया. तिरपाल के नीचे पूजा की शुरुआत हुई. यह पूरे गांव की सामूहिक मेहनत और आस्था का परिणाम था.

मुस्लिम के नाम पर निर्गत हुआ लाइसेंस : आदर दुर्गा पूजा की सबसे खास और ऐतिहासिक बात यह रही कि पूजा का लाइसेंस गांव के ही मुस्लिम छकौड़ी मियां के नाम से निर्गत किया गया था. उनके जीवित रहते तक दुर्गा पूजा का लाइसेंस उनके नाम से ही चलता रहा. गुमला जिला ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में यह पहली बार हुआ था कि किसी मुस्लिम के नाम से दुर्गा पूजा का लाइसेंस जारी हुआ. इस जगह पर तिरपाल के नीचे माता रानी की प्रतिमा रख कर पूजा शुरू हुई थी. अब उस जगह पर भव्य मंदिर बन गया है, जहां माता रानी की प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा कर प्रतिदिन पूजा की जाती है.

पूजा के अलावा होंगे कई धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम

इस बार आदर दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष बादल राम व सचिव पप्पू गुप्ता बनाये गये हैं. उन्होंने बताया कि उस दौर में जिन कठिन परिस्थितियों में पूजा शुरू हुई थी. वह अपने आप में अनुकरणीय है. शुरुआत में पूजा का खर्च एक हजार रुपये हुआ करता था. अब साढ़े तीन लाख रुपये खर्च होता है. अध्यक्ष व सचिव ने बताया कि इस बार भव्य रूप से पूजा की जा रही है. दुर्गा पूजा के अलावा कई धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे.

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Prabhat Khabar News Desk
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