जगरनाथ
गुमला : संत इग्नासियुस लोयोला का आज (31 जुलाई) पर्व दिवस है. आज ही के दिन उनका निधन हुआ था. संत इग्नासियुस की जीवन की कहानी प्रेरणा से भरी पड़ी है. अगर हर एक मनुष्य उनके जीवन से शिक्षा ग्रहण करें तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव आयेगा और चारों ओर खुशहाली होगी. किस प्रकार इग्नासियुस एक महान योद्धा के बाद धर्मसंघ की स्थापना की और वे संत बनें. यह रिपोर्ट उनकी संघर्ष भरे जीवन पर आधारित है. बाक इनिगो, जो बाद में इग्नासियुस कहलाये. वे एक संभ्रांत परिवार से थे. उनका जन्म सन् 1491 में स्पेन लोयोला किला में हुआ था. 11 बच्चों में इनिगो सबसे छोटा था. बचपन से ही इनिगो की तलवारबाजी व युद्ध विद्या में गहरी रूचि थी. लोयोला परिवार का कुछ लोगों से मतभेद हो गया. मामला गहरा गया. इस वजह से इनिगो को शहर छोड़ना पड़ा. बाल्यकाल में स्पेन के राजा के दरबार में एक सेवक के रूप में काम करते वक्त युद्ध विद्या में दक्षता हासिल की. फुहड़पन से भरपूर इनिगो को कुछ पाने की लालसा थी. 1521 ईस्वी को जब वे 30 वर्ष का युवक थे, तो फ्रांसीसी सेना ने स्पेन पर हमला कर दिया.
वीर इनिगो सैनिकों की एक टुकड़ी लेकर फ्रांसीसी सेना से भिड़ गये. इनिगो की वीरता व आदम्य साहस के कारण फ्रांसीसी सैनिकों के दांत खट्टे हो गये. परंतु युद्ध के दौरान इनिगो दुश्मनों के तोप के गोला से घायल हो गये. एक पैर बुरी तरह जख्मी हो गया. उसे फ्रांसीसी सेना ने बंदी बना लिया. लेकिन उसकी वीरता को देखते हुए उसे छोड़ दिया गया. इलाज के क्रम में लोयोला के किला में इनिगो ने संतों की पुस्तकें मंगाई और पढ़ने लगे. संतों की पुस्तक पढ़ने के बाद उनकी सोच में बदलाव आया. उन्होंने सोचा कि जब संत ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं. लेकिन उनका चोटिल पैर का जख्म बढ़ गया. उनका एक पैर काटना पड़ा. वे नहीं बचेंगे, ऐसा सभी कहने लगे. परंतु उनके स्वास्थ्य में एकाएक सुधार हुआ. संतों की पुस्तक पढ़ने के बाद चूंकि उनका मन दुनिया व सुंदरियों के दिल जीतने का सपना छोड़ दिए. लोयोला किला से वह बाहर निकल गये. 10 माह तक एकांत रहे. मनरेसा की गुफा के बगल में बहने वाली नदी काडरेनेर के तट पर उन्हें दिव्य दर्शन मिला. जिसने उसके जीवन को बदल दिया. इनिगो जब 33 वर्ष के थे, तो वे छोटे बच्चों के साथ बैठ कर लैटिन भाषा का अध्ययन किये.
11 वर्षो तक दर्शनशास्त्र व ईश शास्त्र का अध्ययन अलग अलग विश्वविद्यालयों से किये. 1535 ईस्वी में जब वे पेरिस विश्वविद्यालय में एमए की पढ़ाई कर रहे थे, तो उन्होंने अपने कुछ युवा सार्थियों को आकर्षित किये. उन्हें प्रार्थना व तपस्या का मार्ग बताया. इसके बाद रोगियों की सेवा किये. खुद भिक्षाटन किये. इस दौरान वे उपेक्षा व मजाक के शिकार हुए. पेरिस विश्वविद्यालय में पीटर फाबेर व फ्रांसिस जेवियर से मुलाकात किये. विचारों के आदान प्रदान के बाद फ्रांसिस जेवियर भी इनिगो की टोली में शामिल हो गये. इनिगो बारसेलोना से रोम पहुंचे. संत पापा अड्रियल से मिलकर पवित्र भूमि पर तीर्थ पर जाने की अनुमति मांगी. वे वहीं रहना चाहते थे. लेकिन उन्हें लौटना पड़ा. इनिगो अपने सात साथियों के साथ संत पापा पॉल तृतीय की आज्ञाकारिता व निष्ठा के साथ उनकी सेवा में लग गये. इस दौरान 1539 ई. में धर्म समाज स्थापित करने के प्रस्ताव को गहरा धक्का लगा. उनकी कड़ी आलोचना हुई. लेकिन 1540 ई. में संत पापा ने अपने धर्मपत्र के माध्यम से उसकी स्वीकृति दे दी.
इस प्रकार येशु समाज नामक धर्म संघ की स्थापना हुई और इग्नासियुस इस धर्मसंघ के प्रथम सुपरीयर जनरल बनें. इसके बाद इग्नासियुस ऑफ लोयोला की टोली में सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी. 31 जुलाई 1556 ई. को इग्नासियुस की मृत्यु हो गयी. 1541 ई. में फ्रांसिस जेवियर भारत आये और येशु समाजियों का काम शुरू किया. 27 जुलाई 1609 को इग्नासियुस धन्य घोषित हुए और संत पापा ग्रेगोरी ने 12 मार्च 1622 ई. को फ्रांसिस जेवियर के साथ इग्नासियुस को भी संत घोषित किये. इसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष 31 जुलाई को संत इग्नासियुस लोयोला का पर्व दिवस न गुमला में बल्कि पूरे देश में मनाया जाता है.
संत इग्नासियुस स्कूल की स्थापना 1934 ईस्वी में हुई थी
संत इग्नासियुस उच्च विद्यालय गुमला के प्रधानाध्यापक फादर मनोहर खोया ने कहा कि संत इग्नासियुस स्कूल की स्थापना सन 1934 ईसवी में येसु समाजी फादरों के द्वारा की गयी है. यह येसु समाज धार्मिक संघ द्वारा स्थापित एवं संचालित और राज्य सरकार द्वारा प्रस्वीकृति व धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित विद्यालय है. यह विद्यालय अपना अल्पसंख्यक स्वरूप बरकरार रखते हुए भी राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमों का पालन करता है. ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यक विद्यालय होने के कारण ईसा मसीह की शिक्षा एवं इसाई धार्मिक सिद्धांतों, नीतियों का पालन करना इसकी प्राथमिकता है. येसु समाज धर्म संघ की स्थापना सन 1540 ईसवी में संत इग्नासियुस ऑफ लोयोला के द्वारा की गयी थी. जिसने येसु के प्रेम से प्रेरित होकर और उनकी श्रेष्ठतर सेवा के लिए दुनियावी मान-सम्मान का परित्याग किया. इस क्रम में संत इग्नासियुस की आध्यात्मकता, उनका संविधान, व्यक्ति और दुनिया को देखने की दृष्टि एवं सोच से प्रभावित होकर और उन्हें आत्मसात कर प्रत्येक येसु समाजी भी दूसरा ख्रीस्त बनना चाहता है. अपनी शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को ईश्वर से और अपनी शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को प्रकृति से जोड़कर एक नये व्यक्ति एवं समाज निर्माण करना चाहता है.