धनवार में दुर्गापूजा 100 साल से हो रही है. पहली बार यह पूजा रामेश्वर प्रसाद के शिराघर में बंगाली बाबा ने किया था. उस समय कुछ लोगों ने मूर्ति पूजा किये जाने पर व्यंग करते हुए बाबा से सवाल किया, तो बाबा ने प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा की अंगुली पर चीरा लगा दिया. कटे अंगुली से खून रिश्ते देख लोग हतप्रभ रह गये. बताया जाता है कि बंगाली बाबा रोने लगे थे और सबों से माता की स्तुति कर क्षमा मांगी और पूरी आस्था के साथ पूजा में शामिल हुए. बाद में पूजा सार्वजनिक तौर पर धनवार राजा के तहसील भवन, गणेश मंडप और फिर हटिया मैदान में भव्य सार्वजनिक दुर्गा मंडप में होने लगी. पूजा सार्वजनिक होने के बाद इसका विस्तार होता गया. लोग तन-मन-धन से इसमें अपनी-अपनी भागीदारी निभा इसकी भव्यता बढ़ाते चले गये. पूजा के पूर्व से ही धनवार व आसपास का क्षेत्र भक्तिमय हो जाता है.
गाजे-बाजे के साथ निकलती है कलश यात्रा
कलश स्थापना के पूर्व गाजे-बाजे के साथ बाजार के सैकड़ों महिला-पुरुष यात्रा में शामिल होते हैं. सप्तमी को पालकी यात्रा से माता का आगमन होता है और पट खुलने के बाद भक्तों की भीड़ उमती है. पूजा व मेले की शुरुआत हो जाती है.
अंतिम चरण में है पंडाल का निर्माण
इस बार सार्वजनिक दुर्गा मंडप परिसर में राजस्थान के किला की तर्ज पर सुंदर पंडाल का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है. सोमवार को महासप्तमी के अवसर पर पालकी यात्रा की झांकी में बंगाल के कलाकारों की टीम होगी. मंगलवार अष्टमी को महाआरती होगी. बुधवार महानवमी को डांडिया नृत्य, गुरुवार विजयादशमी को मेला, शुक्रवार को भक्ति जागरण व नृत्य नाटिका और शनिवार को माता को भावभीनी विदायी दी जायेगी. सफल बनाने को लेकर दुर्गापूजा महासमिति के अध्यक्ष अमित कुमार, सचिव महेंद्र स्वर्णकार, सचिन साहू, विजय कसेरा, दीपक कसेरा, संतोष साहू, बासुदेव साव, शंभु रजक, रोहित कुमार, छोटू भदानी, विक्रांत कसेरा, रौशन लाल सुमन आदि सक्रिय हैं.
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