बिरनी प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर जनता जरीडीह में लगभग 511 वर्षों से (सात पीढ़ियों) से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर नौ दिवसीय पूजा और भव्य मेले का आयोजन किया जा रहा है. इस कारण हजारों लोगों की आस्था मां के मंदिर से जुड़ी हुई है. आस्था के कारण भक्तों की भारी भीड़ सप्तमी से ही उमड़ने लगती है. जनता जरीडीह के मुखिया टिकैत राजामणि सिंह ने बताया कि जनता जरीडीह कमर स्टेट के राजा टिकैत खेमनारायण सिंह व खेरवार वंशज के बीच खूनी विद्रोह हो गया था. इसमें खेमनारायण सिंह की मौत हो गयी थी. इसके बाद खेमनारायण सिंह की पत्नी अपने पेट में पल रहे बच्चे के वंश को बचाने को लेकर जान बचाकर भाग गयी. इसी बीच स्व खेमनारायण सिंह की पत्नी ने उदय नारायण सिंह को जन्म दिया. उदय नारायण सिंह ने 16 वर्ष की आयु में ही जनता जरीडीह कमर स्टेट पहुंचकर खेरवाड़ वंशज के लोगों के साथ विद्रोह कर उन्हें जनता जरीडीह से भगा दिया ओर राजा बनकर गद्दी पर बैठे. लगभग 30 वर्षों के बाद मरकच्चो कमर स्टेट खेरवाड वंशज के राजा ने उदय नारायण सिंह की हत्या की साजिश रचकर पूजा में शामिल होने के लिए उन्हें मरकच्चो बुलाया. मरकच्चो के राजा के बुलावे पर उदय नारायण सिंह वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि मेरी हत्या करने की योजना बनायी गयी है. सूचना के बाद वहां भी विद्रोह कर वे वहां से भागने में सफल रहे. भागने के दौरान उदय नारायण सिंह ने मरकच्चो में मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगा था कि अगर मैं जीवित लौटकर जनता जरीडीह पहुंच गया तो मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करवाउंगा. जब वह सकुशल अपने घर लौट गए तो एक छोटी सी झोंपड़ी में मां दुर्गा को स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाने लगी. उदय नारायण सिंह की मौत हो जाने के बाद टिकैत राजा चेतनारायण सिंह, उनके बाद टिकैत राजा खुद नारायण सिंह तक के शासन में झोपड़ी में ही मां की पूजा की जा रही थी. धीरे धीरे मां दुर्गा की ख्याति बढ़ती गयी. लोगों की आस्था इसमें बढ़ती चली गयी. इसे देखते हुए टिकैत राजा बिचित्र नारायण सिंह के द्वारा चूना, श्रुति, गंगोटी ओर घट्ठा से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. उनके निधन के बाद राजा टिकैत ब्रजमोहन नारायण सिंह, उनके निधन के बाद टिकैत खगेंद्र नारायण सिंह और वर्तमान समय में टिकैत राजामणि सिंह के द्वारा माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर मेले का आयोजन किया जा रहा है. कहा कि लगभग 511 वर्षो से मां दुर्गा की पूजा प्रतिमा स्थापित कर मेले का आयोजन किया जा रहा है. महासप्तमी से ही दर्जनों गांव के भक्त पूजा अर्चना को लेकर यहां जुटने लगते हैं. यह मां की महिमा ही है कि जो लोग श्रद्धा मन से मां से मन्नते मांगते हैं, मां उनकी मनोकामना को पूरा करती हैं.
भैंसे की दी जाती है बलि
बताया कि प्रथा के अनुसार नवमी के दिन भैंसे की बलि यहां दी जाती है, जिसके बाद दसवीं को भव्य मेला का आयोजन किया जाता है. मेला में अगल बगल के दर्जनो गांव के ग्रामीणों की भारी भीड़ इसमें उमड़ती है.
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