मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए एक बड़ा वरदान रहा है, जिसका लाभ अब तक लाखों गरीब रोगी उठा सकें हैं. लेकिन, अधिकारियों की मनमानी तथा लापरवाही के कारण पिछले 10 माह से आयुष्मान से जुड़े अस्पताल को विभाग से राशि नहीं मिली है. इससे निजी अस्पताल में आयुष्मान कार्डधारियों का इलाज करने के कतरा रहे हैं. इस संबंध में एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर ऑफ इंडिया (झारखंड चैप्टर), हॉस्पिटल बोर्ड ऑफ इंडिया तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने संयुक्त रूप से प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है. कहा गया है कि इन दिनों एमएमजेएवाई कार्यक्रम चलाना निजी अस्पतालों के लिए मुश्किल हो गया है. इन अस्पतालों द्वारा मरीज के इलाज के एवज में पिछले 10 माह से राशि नहीं दी गयी. अर्थाभाव के कारण जरूरतमंद मरीजों का इलाज बंद करना आयुष्मान भारत से जुड़े निजी अस्पतालों की मजबूरी हो रही है. बताया गया कि आयुष्मान भारत से जुड़े झारखंड के 212 निजी अस्पताल को पिछले 10 महीना से एमएमजेएवाई कार्यक्रम के तहत भुगतान नहीं किया गया. इससे निजी अस्पतालों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इसके कारण अस्पतालों को चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है. बड़ी आबादी है योजना पर है निर्भर प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कहा गया है कि झारखंड राज्य कि लगभग 88 प्रतिशत आबादी इस एमएमजेएवाई योजना के तहत इलाज के लिए पात्र हैं. इन दिनों आर्थिक रूप से पिछड़े सभी रोगियों के पास आयुष्मान कार्ड है. राशि नहीं मिलने के कारण अस्पतालों के सामने इवित्तीय कठिनाई है. इसके कारण कई अस्पताल अपना संचालन बंद करने वाले हैं. 212 अस्पताल नेशनल एंटी फ्रॉड यूनिट आरोप से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं. यह बहुत ही गैर महत्वपूर्ण आरोप है. सरकार ने कई अस्पतालों को उनके आरोपों से मुक्त कर दिया है. आरोप मुक्त करने के बाद भी उन्हें गरीब मरीजों को दी गयी उनकी सेवाओं के लिए कोई भुगतान नहीं मिल रहा है. उन्हें कभी भी एमएमजेएवाई योजना के तहत इलाज बंद करने के लिए नहीं कहा गया है. आरोप मुक्त वैसे अस्पताल उक्त योजना के तहत मरीज का इलाज जारी रखे हैं. लेकिन उन्हें पिछले 10 महीना से कोई भुगतान नहीं मिल रहा है. नहीं हो रही शिकायत निवारण प्रकोष्ठ की बैठक कहा गया कि सरकार निजी अस्पतालों को सिर्फ निर्देश दे रही है और कई नियम लागू कर रही है. लेकिन शिकायत निवारण प्रकोष्ठ की नियमित बैठक आयोजित नहीं कर रही है. हमारे सकारात्मक दृष्टिकोण के बावजूद हमारे मुद्दों पर ध्यान नहीं देते हैं. निजी अस्पतालों की समस्या के समाधान के लिए हर जिले में जिला शिकायत निवारण प्रकोष्ठ की मासिक बैठक का प्रावधान है. लेकिन, कई जिलों में पिछले सात वर्षों से एक भी बैठक नहीं हुई है. कुछ जिलों में अपेक्षाकृत काम बैठक हुई हैं. समस्या के समाधान के लिए राज्य शिकायत निवारण प्रकोष्ठ की बैठक का भी प्रावधान है. लेकिन, बैठक शायद ही कभी होती है. यदि बैठक होती भी है, तो शायद ही कभी निजी अस्पतालों को इसमें शामिल किया जाता है. क्या कहते हैं सचिव इस संबंध एसोसिएशन ऑफ हेल्थ केयर प्रोवाइडर ऑफ इंडिया (झारखंड चैप्टर) के सचिव डॉ राजेश कुमार ने बताया कि उक्त समस्याओं को लेकर निजी अस्पतालों को बंद करने पर संचालकों को मजबूर होना पड़ेगा. इससे गरीब मरीजों के समक्ष समस्या पैदा होगी. इधर, हम इलाज जारी रखने के लिए तैयार हैं. सभी निजी अस्पतालों को भुगतान में देरी के कारण काम को रोकने के बारे में सोच सकते हैं, जो पूरे समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता की बात है.
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