पीयूष तिवारी, रंका राज्य सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित और मानव तस्करी के शिकार बच्चों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के उद्देश्य से 2019 में रंका में स्थापित नेताजी सुभाषचंद्र बोस आवासीय विद्यालय आज खुद मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है. हालात यह है कि इस विद्यालय में एक भी नियमित शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है, जबकि यहां कक्षा 1 से 10 तक की पढ़ाई होती है. सिर्फ पार्ट-टाइम शिक्षकों के सहारे चल रही पढ़ाई विद्यालय में कुल 110 से अधिक छात्र नामांकित हैं, लेकिन पढ़ाने के लिए सिर्फ चार पार्ट-टाइम शिक्षक ही नियुक्त हैं. ये शिक्षक हिंदी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को किसी तरह संभाल रहे हैं, जबकि अंग्रेजी जैसे प्रमुख विषय के लिए कोई शिक्षक नहीं है. एकमात्र पूर्णकालिक शिक्षिका, जो वार्डन के रूप में कार्यरत हैं, उन्हें भी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है. 15 पद स्वीकृत, लेकिन बहाली नहीं विद्यालय के लिए शिक्षा विभाग द्वारा कुल 15 पद सृजित किये गये हैं, जिनमें 7 विषयवार पूर्णकालिक शिक्षक, 1 कंप्यूटर शिक्षक, 2 आदेशपाल-सह-रात्रि प्रहरी, 1 मुख्य रसोइया, 3 सहायक रसोइया और 1 लेखापाल का पद शामिल है. लेकिन अब तक एक भी पद पर नियमित बहाली नहीं हुई है. स्मार्ट क्लास है, लेकिन इंटरनेट नहीं विद्यालय में स्मार्ट क्लास की सुविधा तो है, लेकिन इंटरनेट और वाईफाई कनेक्टिविटी नहीं है। कंप्यूटर शिक्षक के अभाव में कंप्यूटर शिक्षा पूरी तरह ठप है। सुरक्षा और निगरानी की कमी, बच्चे भाग रहे हैं स्कूल से विद्यालय में सिर्फ एक गार्ड है, और वार्डन भी प्रतिनियुक्ति पर हैं. ऐसे में रहने वाले नाबालिग बच्चों की निगरानी नहीं हो पा रही है. कई बार बच्चों के विद्यालय से भागने की घटनाएं हो चुकी हैं. अप्रैल महीने में भी एक छात्र भाग गया था, जिसकी सूचना पुलिस और बाल कल्याण समिति को दी गयी थी. विद्यालय के उद्देश्य के साथ हो रहा खिलवाड़ यह विद्यालय खासकर भंडरिया, बड़गड़, चिनियां, रमकंडा और रंका जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों के लिए खोला गया था. साथ ही मानव तस्करी और कोविड से प्रभावित अनाथ बच्चों को सुरक्षित शिक्षा देना इसका उद्देश्य था. यह विद्यालय शिक्षा विभाग द्वारा संचालित है और भविष्य में 12वीं तक की पढ़ाई की योजना थी, लेकिन फिलहाल सिर्फ 10वीं तक की ही पढ़ाई हो रही है.
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