जितेंद्र सिंह, गढ़वा जैसे ही ठंड का मौसम दस्तक देता है, गढ़वा जिला प्रकृति के एक अद्भुत नजारे का साक्षी बनने लगता है. सुदूर साइबेरिया, मंगोलिया और मध्य एशिया के अत्यंत ठंडे इलाकों से हजारों किलोमीटर की लंबी यात्रा तय कर प्रवासी साइबेरियन पक्षी गढ़वा के जलाशयों की ओर रुख करते हैं. इन दिनों जिले के कई प्रमुख जलस्रोत इन मेहमान पक्षियों के झुंड से गुलजार हो उठे हैं. विशेष रूप से गढ़वा जिला मुख्यालय के करीब अन्नराज डैम, रमना प्रखंड स्थित जिरूआ जलाशय और भवनाथपुर सेल डैम में इन विदेशी पक्षियों की चहलकदमी साफ तौर पर देखी जा सकती है. सुबह की हल्की धूप और शाम के शांत वातावरण में जब ये पक्षी झुंड बनाकर जलाशयों के ऊपर उड़ान भरते हैं, तो दृश्य अत्यंत आकर्षक हो जाता है. पानी की सतह पर तैरते सफेद और धूसर रंग के ये पक्षी प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. हर साल तीन महीने रहते हैं मेहमान जानकारों के अनुसार, साइबेरियन पक्षी हर साल ठंड से बचने के लिए भारत के अपेक्षाकृत गर्म और सुरक्षित क्षेत्रों में आते हैं. गढ़वा जिले के जलाशयों में उन्हें पर्याप्त भोजन, शांत वातावरण और खुले जल क्षेत्र उपलब्ध हो जाते हैं. यहीं वजह है कि ये पक्षी लगभग तीन महीने तक यहां प्रवास करते हैं. फरवरी और मार्च के महीने में जैसे ही तापमान बढ़ने लगता है, ये पक्षी वापस अपने मूल स्थानों की ओर लौट जाते हैं. पर्यावरण के लिए भी हैं महत्वपूर्ण प्रवासी पक्षियों का आगमन केवल प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं बढ़ाता, बल्कि यह पर्यावरण संतुलन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. ये पक्षी जलाशयों की जैव विविधता को समृद्ध करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में सहायक होते हैं. पर्यावरणविदों का मानना है कि किसी भी क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों की नियमित उपस्थिति वहां के स्वस्थ पर्यावरण का संकेत होता है. पर्यटन की अपार संभावनाएं स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि इन जलाशयों को पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित किया जाये, तो गढ़वा जिला ‘बर्ड वॉचिंग’ के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर सकता है. प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से पर्यटक आ सकते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार और आय के नये अवसर भी सृजित होंगे. पर्यावरण प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने आम लोगों से अपील की है कि प्रवासी पक्षियों को किसी प्रकार की हानि न पहुंचायें. शिकार, तेज आवाज, प्लास्टिक कचरा और जल प्रदूषण जैसी गतिविधियां पक्षियों के लिए घातक साबित हो सकते हैं.
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