गढ़वा में मत्स्य पालन क्षेत्र में बड़ा निवेश, एफआइडीएफ योजना बनी वरदान वरीय संवाददाता, गढ़वा गढ़वा जिले में मत्स्य पालन के क्षेत्र में बड़ा निवेश होने जा रहा है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देने वाला साबित होगा. केंद्र सरकार की मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास निधि (एफआइडीएफ) योजना के तहत जिले से भेजे गये प्रोजेक्ट्स को विशेष प्राथमिकता मिल रही है. इससे जिले में मछली उत्पादन बढ़ाने की संभावनाएं काफी मजबूत हुई हैं. जानकारी के अनुसार एफआइडीएफ योजना के तहत मेराल प्रखंड के पीड़रा गांव में नुरूल होदा अंसारी के प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिल चुकी है. यह झारखंड राज्य का दूसरा स्वीकृत एफआइडीएफ प्रोजेक्ट है. इस योजना के तहत 4 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गयी है, जिसका उपयोग अत्याधुनिक मत्स्य पालन अवसंरचना एवं बीज (सीड) उत्पादन इकाई के विकास में किया जायेगा. जिला मत्स्य पदाधिकारी धनराज आर कापसे ने बताया कि राज्य से कुल सात प्रोजेक्ट केंद्र को भेजे गये हैं, जिनमें से पांच केवल गढ़वा जिले से हैं. पीड़रा गांव के प्रोजेक्ट की स्वीकृति के बाद जिले के शेष चार प्रस्ताव पाइपलाइन में हैं. इनमें पनघटवा डैम और अन्नराज डैम में केज कल्चर को बढ़ावा देना तथा भवनाथपुर में सीड उत्पादन से जुड़ी आधारभूत संरचना के विकास संबंधी प्रस्ताव शामिल हैं. उत्पादन बढ़ाने पर विशेष फोकस आंकड़ों के अनुसार गढ़वा जिले में हर वर्ष लगभग 12 हजार मीट्रिक टन मछली की आवश्यकता होती है, जबकि वर्तमान में लगभग आठ हजार मीट्रिक टन ही उत्पादन हो पाता है. इस प्रकार जिले में चार हजार मीट्रिक टन की कमी रहती है, जिसकी पूर्ति अन्य जिलों एवं राज्यों से आयात के माध्यम से की जाती है. जिला मत्स्य पदाधिकारी के अनुसार इस गैप को भरने के लिए स्थानीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण मछली बीज (सीड) उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है. एफआइडीएफ के तहत सीड उत्पादन की आधारभूत संरचना तैयार करने का उद्देश्य भी इसी कमी को दूर करना है, ताकि किसान अधिक उत्पादन कर सकें और जिले की आत्मनिर्भरता बढ़े. प्रशासन के स्तर पर निरंतर प्रयास शासन-प्रशासन रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराकर मत्स्य पालकों और उद्यमियों को आधुनिक हैचरी, कोल्ड स्टोरेज और केज कल्चर जैसी तकनीकों को अपनाने में सहायता कर रहे है. इससे जिले में मत्स्य पालन के क्षेत्र में उपलब्ध संभावनाओं को वास्तविक रूप दिया जा सकेगा. क्या है योजना एफआइडीएफ योजना के तहत परियोजना लागत का 80 प्रतिशत तक ऋण उपलब्ध कराया जाता है. खास बात यह है कि सरकार इस ऋण पर तीन प्रतिशत तक का वार्षिक ब्याज उपदान देती है. इससे किसानों और उद्यमियों पर आर्थिक बोझ कम हो जाता है. निजी उद्यमी, किसान, मत्स्य सहकारी समितियां एवं स्वयं सहायता समूह विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर नोडल ऋण संस्थान बैंकों में जमा कर सकते हैं. बैंक द्वारा मूल्यांकन और स्वीकृति के बाद ऋण जारी किया जाता है. जिले में 7880 निबंधित मछुआरे एफआइडीएफ योजना को लेकर गढ़वा जिले में तेजी से सक्रियता बढ़ी है. वर्तमान में गढ़वा में निबंधित मछुआरों की संख्या 7,880 है. विभाग की ओर से सभी निबंधित मछुआरों का पांच-पांच लाख रुपये का बीमा भी कराया गया है. यह योजना जिले में मत्स्य विकास के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है.
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