गालूडीह.
गालूडीह क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में आदिवासी समाज में सोहराय व कुड़मी समाज में बांदना पर्व का विशेष महत्व होता हैं. पर्व को लेकर घर-द्वार सजने लगे हैं. महिलाएं घर में मिट्टी का लेप दे रही है. दीवार में रंग-बिरंगे फूल बनायें जा रहे हैं. प्रत्येक वर्ष काली पूजा के दिन से सोहराय शुरू हो जाता है. दूसरे दिन आदिवासी समाज गोट व कुड़मी समाज गोहाल पूजा करता है. गोहाल पूजा के साथ बांदना पर्व की भी धूम होती है. सप्ताह भर जगह-जगह गोरू खूंटाव का आयोजन होता है. लोग खूंटे से बैलों को बांध कर नचाते हैं. बांदना और सोहराय बेहतर धान की खेती और जानवरों ने जो साल भर मेहनत की है, उसे पूजने का पर्व है. गोहाल पूजा में लोग गोहाल को गोबर से लेप कर सजाते हैं और दीप जलाते हैं. बैलों के सींग में तेल व धान का माला पहनाया जाता हैं. उनके शरीर में रंग-बिरंगे छाप दिये जाते हैं. शाम के वक्त महिलाएं सूप में चावल व दीप लेकर बैलों को चूमाती है और गुड़ पीठा खिलाती है. गांव में सप्ताह भर लोग मांदर की थाप पर सोहराय और बांदना पर्व मनाते हैं. मेहमान सगे-संबंधियों के घर जाते हैं. गुड़ पीठा का पकवान बनता है. शहरों में दीपावली तो गांवों में सदियों से सोहराय और बांदना पर्व का अलग महत्व हैं, जो आज भी कायम है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

