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East Singhbhum News : अंग्रेजी व अन्य भाषा के चक्कर में अपनी मातृभाषा को न भूलें : प्राचार्य

घाटशिला और बहरागोड़ा कॉलेज में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर कार्यक्रम

घाटशिला. घाटशिला कॉलेज में शुक्रवार को बांग्ला, संताली, हिंदी व अंग्रेजी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया गया. प्राचार्य डॉ आरके चौधरी ने बताया कि मातृभाषा से ही हमारी संस्कृति जुड़ी है. राष्ट्र व समाज हित में मातृभाषा का सम्मान करें. मातृभाषा का जुड़ाव जन्म देने वाली मां से रहता है. मातृभाषा का सम्मान मां का सम्मान है. प्राचार्य ने कहा कि पूरी दुनिया में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं. भारत में लगभग 1600 भाषाएं बोली जाती हैं. कई ऐसी भाषाएं हैं, जिनके बोलने वालों की संख्या 10 हजार से कम है. ऐसी भाषा का अस्तित्व संकट में है. इसे संरक्षण देने की आवश्यकता है.

प्राचार्य ने कहा कि रोजगार के लिए लोग अंग्रेजी व अन्य विदेशी भाषा के चक्कर में अपनी मातृभाषा बोलना छोड़ रहे हैं. यह एक तरह से सामाजिक एवं सांस्कृतिक अपराध है. इसी कारण हमारी मातृभाषा, लोक परंपराएं एवं संस्कृति विलुप्त होती जा रही हैं.

कार्यक्रम के प्रारंभ में 1952 में बांग्ला भाषा को मान्यता को लेकर शहीद हुए ढाका विश्वविद्यालय के चार छात्रों के शहीद स्मारक प्रतीक चिन्ह पर श्रद्धांजलि दी गयी. अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ डीसी राम ने किया. संचालन बांग्ला विभाग के अध्यक्ष डॉ संदीप चंद्र ने किया. मौके पर प्रो इंदल पासवान, प्रो महेश्वर प्रमाणिक, डॉ कुमार विशाल, संथाली विभाग के अध्यक्ष प्रो माणिक मार्डी, डॉ कन्हाई बारीक, डा चिरंतन महतो, डा सरयू पॉल, डॉ सिंगो सोरेन, डा रुचि स्मिता, शर्मिष्ठा पात्र समेत छात्र-छात्राएं उपस्थित थे.

घर में बच्चों व परिवार से मातृभाषा में ही बात करें : डॉ बालकृष्ण बेहरा

बहरागोड़ा कॉलेज के सांस्कृतिक सेल ने शुक्रवार को विश्व मातृभाषा दिवस पर परिचर्चा आयोजित की. इसकी अध्यक्षता प्राचार्य डॉ बालकृष्ण बेहरा ने की. डॉ बेहरा ने कहा कि मातृभाषा का अर्थ है, मां के मुख से बच्चे के लिए अथवा बच्चे के मुख से मां के लिए निकला हो. यह दिवस मूल रूप से भाषा के आधार पर बांग्लादेश के गठन से संबंधित है. हमारे देश में कई राज्यों का निर्माण मातृभाषा के आधार पर हुआ है. उन्होंने कहा कि आज सरकारी भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसका दुष्प्रभाव मातृभाषा पर पड़ रहा है. आजादी के पूर्व से वर्तमान तक जितने आयोग का गठन हुआ है, सभी ने मातृभाषा में शिक्षा की सिफारिश की है. दुर्भाग्य से आयोग या शिक्षा समितियां की सिफारिश धरातल पर नहीं उतरी है. सरकार के भरोसे मातृभाषा की रक्षा संभव नहीं है. प्रत्येक व्यक्ति को अपने परिवार में परिवार के सदस्य व बच्चों के साथ बोलचाल की भाषा मातृभाषा रखना सुनिश्चित करना होगा. विश्व में कई ऐसे शक्तिशाली देश हैं, जो दूसरी भाषा का अनुकरण नहीं करते हैं फिर भी प्रगति के पथ पर बढ़ रहे हैं. मंच का संचालन डॉ डी राजन ने किया.

परिचर्चा में शामिल लोगों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में विचार रखा

इस अवसर पर विभिन्न विषयों के शिक्षक व विद्यार्थियों ने अपने-अपने विचार रखे. कार्यक्रम की विशेषता रही कि परिचर्चा में भाग लेने वाले सभी लोगों ने अपनी मातृभाषा में अपने विचार रखे. प्राचार्य ने संबलपुरी व अन्य ने संताली, मगही, सुवर्णारेखीय, मानभूमि, कुड़माली, खोरठा, ब्रज, अंगिका आदि में बात रखी.

मौके पर प्रो बीरबल हेंब्रम, डॉ बीबी महतो, पूनम कुमारी, हर्षित टोपनो, डॉ पीके चंचल, डॉ सुरेंद्र कुमार मौर्य, तिलेश्वर रुईदास, डी राजन, केके महतो, डीके सिंह, डॉ अमरेश कुमार आदि अन्य कई शिक्षक उपस्थित थे.

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