घाटशिला. घाटशिला विधानसभा उप चुनाव की तैयारियां तेज हो गयीं हैं. जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है, घाटशिला के चौक-चौराहों और होटलों में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गयी हैं. विभिन्न दलों के नेताओं की चहल-पहल से इलाका राजनीतिक रंग में रंग गया है. 13 अक्तूबर से घाटशिला अनुमंडल कार्यालय में नामांकन शुरू हो जायेगा. हालांकि अब तक दोनों प्रमुख दल महागठबंधन और एनडीए ने अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं की है. महागठबंधन से सोमेश सोरेन और एनडीए से बाबूलाल सोरेन संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं. दोनों महीनों से फील्डिंग कर रहे हैं.
मधु कोड़ा, गीता कोड़ा और भानु प्रताप शाही भी घाटशिला में सक्रिय
रविवार को घाटशिला के एक होटल में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, चाईबासा की पूर्व सांसद गीता कोड़ा, पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही समेत कई राजनीतिक दलों के बड़े नेता एक साथ नजर आये. बताया जा रहा है कि सभी नेता आगामी उपचुनाव की रणनीति को लेकर चर्चा में जुटे हैं. वहीं झामुमो के दीपक बिरुवा, सुदिव्य कुमार सोनू लगातार घाटशिला आ रहे हैं.
जनता बदलाव चाह रही है :
मधु कोड़ा घाटशिला की जनता बदलाव चाह रही है. पिछले तीन बार से झामुमो के प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं. अब तक कोई ठोस बदलाव नहीं हुआ है. जनता बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है. इस विधानसभा क्षेत्र में मुसाबनी, राखा, सिद्धेश्वर चापड़ी जैसे औद्योगिक और खनन क्षेत्र शामिल हैं. मऊभंडार स्थित एचसीएल/आईसीसी कारखाना आज भी पूरा चालू नहीं हुआ, लेकिन मजदूरों की कमी और रोजगार की अनुपलब्धता चिंता का विषय बनी हुई है. घाटशिला अनुमंडल अस्पताल होने के बावजूद चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह लचर है. 108 एंबुलेंस सेवा समय पर नहीं पहुंचती. शिक्षा व्यवस्था भी बदहाल है. बेरोजगार युवाओं का लगातार पलायन जारी है. आम जनता को बालू ऊंचे दामों पर खरीदनी पड़ रही है.महिला सुरक्षा की स्थिति भी चिंताजनक : गीता कोड़ा
केंद्र और राज्य सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाएं हैं, लेकिन वे धरातल पर नहीं उतर पायी है. लॉकडाउन के समय मनरेगा योजना ने ग्रामीण जनता को सहारा दिया था, लेकिन आज यह योजना भी विफल होती दिख रही है, कागजी सरकार को ध्यान नहीं है. मंईयां योजना के तहत महिलाओं को ढाई हजार रुपये तो दिए जा रहे हैं, लेकिन शिक्षा और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सरकार का ध्यान नहीं है. झारखंड के कई महिला कॉलेजों की क्या स्थिति है, उससे झारखंड की जनता अवगत है. महिलाओं के उत्थान की बात तो होती है, लेकिन सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में गंभीरता नहीं दिखायी है. महिला सुरक्षा की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

