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23 वर्षों से उठती रही आवाज, लेकिन नहीं स्थापित हो सकी दुमका में हाइकोर्ट की बेंच

झारखंड उच्च न्यायालय में संताल परगना क्षेत्र के करीब 45 हजार मामले विचाराधीन हैं. इनमें से कई मामले तो ऐसे हैं, जिनकी सुनवाई के लिए संबंधित पक्षकार अपना पक्ष रखने रांची नहीं पहुंच पाते हैं.

दुमका: दुमका राज्य की उप-राजधानी है. राज्य की सत्ता को यह क्षेत्र प्रभावित करता रहा है और राजनीतिक दशा-दिशा से हमेशा यह क्षेत्र सुर्खियों में रहा करता है. झारखंड अलग राज्य बनने को लेकर संघर्ष की बात हो या राज्य के अन्य बड़े मुद्दे, दुमका उसका केंद्र हुआ करता है. अलग राज्य बना, तो इसे उप-राजधानी का दर्जा मिला. इसके बाद एक मांग इस इलाके से उठी, वह थी यहां झारखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ को स्थापित कराने की.
इस विषय को तमाम राजनीतिक दलों ने अपने एजेंडे में डाला, पर किसी ने मुकाम तक नहीं पहुंचाया. दीगर है कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ को यहां स्थापित कराने के लिए जमीन अधिग्रहण तक की एक बार पहल हुई. भुगतान भी हुआ. कई बार न्यायिक पदाधिकारियों का दौरा भी हुआ, विधानसभा से प्रस्ताव पारित भी किया गया. लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ी. इस दौरान दर्जनों बार आंदोलन हुए, अधिवक्ताओं की ओर से आवाज उठी और शीर्ष नेताओं को ज्ञापन भी सौंपा गया. हजारों पोस्टकार्ड लिखे गये, लेकिन कदम हैं कि आगे बढ़ नहीं रहे. अब स्थिति ऐसी हो गयी है कि आवाज उठाने वाले भी सुस्त पड़ने लगे हैं.

क्यों जरुरी है दुमका में हाइकोर्ट की बेंच
दुमका से राजधानी रांची की दूरी लगभग साढ़े तीन सौ किलोमीटर से अधिक है. साहिबगंज-पाकुड़ जैसे जिलों के लिए तो दूरी और भी अधिक है. ऐसे में वहां जाकर अपने न्याय के लिए कानूनी लड़ाई लड़ पाना इस पिछड़े इलाके के लोगों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से सुविधाजनक नही है. पैसे और समय के अभाव में लोग अपने मुकदमे की पैरवी तक नहीं कर पाते. ऐसे में वे न्याय से वंचित रह जाते हैं. जब राज्य अलग नहीं हुआ था, तो राजधानी पटना थी और उपराजधानी रांची. लोगों का कहना है कि उस वक्त रांची में पटना उच्च न्यायालय का सर्किट बेंच हुआ करता था. अब आवश्यक है कि दुमका में सर्किट बेंच बनाया जाये.

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संताल परगना के 45 हजार मामले लंबित
जानकारों की मानें, तो झारखंड उच्च न्यायालय में संताल परगना क्षेत्र के करीब 45 हजार मामले विचाराधीन हैं. इनमें से कई मामले तो ऐसे भी हैं, जिनकी सुनवाई के लिए संबंधित पक्षकार अपना पक्ष तक रखने रांची नहीं पहुंच पाते हैं. अगर इतने सारे मामले सर्किट बेंच स्थापित होने पर यहां स्थानांतरित हुए या उन मामलों की सुनवाई इस क्षेत्र में हुई, तो बड़ी राहत दोनों पक्षों को होगी. बता दें कि बंदोबस्त जैसे मामले को लेकर सबसे अधिक विवाद संताल परगना में हैं. ऐसे मामले में बंदोबस्त न्यायालय के ऊपर आयुक्त का न्यायालय ही अपीलिय प्राधिकार होता है. यहां के बाद अपील के लिए पक्षकार को हाईकोर्ट का ही रूख करना पड़ता है.

राज्य भेजता है प्रस्ताव, केंद्र बनाता है कानून
किसी भी उच्च न्यायालय की बेंच अथवा सर्किट बेंच की स्थापना के लिए राज्य सरकार केंद्र के पास प्रस्ताव भेजती है. इसके लिए केंद्र सरकार संसद में कानून बनाती है. जब बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था और रांची में पटना उच्च न्यायालय की बेंच की मांग उठी थी, तब संसद ने स्टेब्लिशमेंट ऑफ परमानेंट बेंच एट रांची एक्ट पास किया था. उसके बाद ही 1976 में रांची में पटना हाइकोर्ट की स्थायी बेंच का गठन किया गया था.

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