यहां लगता है चूड़ियों का मेला, जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित प्रतिनिधि, रानीश्वर (दुमका) मुहर्रम के अगले दिन रानीश्वर प्रखंड के हामिदपुर गांव में एक अनोखा मेला लगता है, जिसे ”चूड़ी मेला” कहा जाता है. यह मेला बीबी फातमा की आस्ताना परिसर में आयोजित होता है और इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें पुरुषों का प्रवेश पूर्णतः वर्जित होता है. यहां मेले की तैयारियों से लेकर उसकी पूरी व्यवस्था तक सिर्फ महिलाएं ही जिम्मेदारी संभालती हैं. सोमवार को मुहर्रम संपन्न होने के दूसरे दिन जब बीबी फातमा की आस्ताना पर मुस्लिम महिलाएं सिरनी और चूड़ियां चढ़ाने पहुंचीं, तो पूरा परिसर श्रद्धा और आस्था से भर गया. रानीश्वर सहित आसपास के गांवों की सैकड़ों महिलाएं इस मेले में शामिल हुईं. पारंपरिक चूड़ी और प्रसाद चढ़ाने की प्रक्रिया में मेले ने एक त्योहार का रूप ले लिया. गांव में इस मेले को लेकर विशेष तैयारियां की जाती हैं. मेले के दिन पुरुषों को मजार परिसर तो छोड़िए, गांव के मुख्य रास्ते तक आने की अनुमति नहीं होती. पुरुषों के प्रवेश को रोकने के लिए युवाओं टीम बनाकर गांव के प्रवेश द्वार पर पहरा दिया जाता है. यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं को सामाजिक नेतृत्व और सम्मान का अवसर भी प्रदान करती है. पाथरा गांव के निवासी गुलाम रब्बान खान ने बताया कि यह मेला बीबी फातमा की स्मृति में आयोजित होता है, जो इमाम हुसैन की माता थीं. पहले यह मज़ार पश्चिम बंगाल के चरिचा गांव के पास हुआ करता था, लेकिन बाद में इसे हामिदपुर स्थानांतरित कर दिया गया. तभी से यहां चूड़ी मेला लगने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक उसी श्रद्धा के साथ जारी है. गुलाम रब्बान बताते हैं कि मुहर्रम के मंजिल माटी कार्यक्रम के बाद यह मेला लगता है. महिलाएं चूड़ियां चढ़ाकर मन्नतें मांगती हैं और बीबी फातमा की आस्ताना से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. यह मेला एक ऐसा सांस्कृतिक प्रतीक बन चुका है, जिसमें आस्था, नारी शक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.
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