रात में पीएम 2.5 का स्तर खतरनाक सीमा पर, एक्यूआइ 190 तक पहुंचा
धनबाद.
धनबाद कोयलांचल की हवा इन दिनों शाम ढलते ही जहरीली होती जा रही है. दिन में सामान्य दिखने वाली हवा रात होते ही सांसों के लिए बोझ बन जा रही है. धनबाद में रात के समय प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है. इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी महसूस हो रही है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, दिन में जहां हवा में पीएम 2.5 का स्तर 30 से 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक रहता है, वहीं रात के समय यह 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच जा रहा है. चार और पांच नवंबर की रात 11 से 12 बजे के बीच धनबाद में पीएम 2.5 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक दर्ज किया गया.रात में बढ़ता प्रदूषण, खतरनाक स्तर पर एक्यूआइ
हवा में पीएम 2.5 के बढ़ते स्तर के कारण धनबाद का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) भी अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है. चार और पांच नवंबर की रात 11 से 12 बजे के बीच धनबाद का एक्यूआइ 190 के स्तर पर रिकॉर्ड किया गया, जो ””खराब”” श्रेणी में आता है. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्तर लगातार बना रहा तो आने वाले दिनों में यह ””बहुत खराब”” श्रेणी में जा सकता है.
क्या है पीएम 2.5
पीएम 2.5 यानी पार्टिकुलेट मैटर वे सूक्ष्म धूल कण होते हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है. यह धूल, धुआं, राख, औद्योगिक उत्सर्जन और वाहन के धुएं के मिश्रण से बनता है.वातावरण में कहां से पहुंचता है पीएम 2.5
धनबाद जैसे औद्योगिक और कोयला क्षेत्र में पीएम 2.5 का मुख्य स्रोत कोयला के जलने, वाहनों के धुएं, ईंधन के दहन, औद्योगिक गतिविधियां और निर्माण कार्य हैं. सर्दियों की शुरुआत में ठंडी हवा और कम वायु प्रवाह के कारण यह धूल ऊपर नहीं जा पाती और वातावरण में ही बनी रहती है. इससे प्रदूषण का स्तर अचानक बढ़ जाता है.तय मानक और स्वास्थ्य पर खतरा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पीएम 2.5 का सुरक्षित मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. यदि यह स्तर इससे ऊपर चला जाए तो इसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है. धनबाद में रात के समय इसका स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंचना खतरे की घंटी है.चिकित्सकों का कहना है कि पीएम 2.5 का उच्च स्तर फेफड़ों, हृदय और ब्रेन पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है. यह कण सांस के साथ सीधे फेफड़ों में पहुंचकर रक्त प्रवाह में शामिल हो जाते है. इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. बुजुर्गों, बच्चों और पहले से अस्थमा या हृदय रोग से पीड़ित लोगों पर इसका प्रभाव और भी गंभीर होता है.
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