धनबाद.
शारदीय नवरात्र को लेकर हर तरफ उत्साह का माहौल है. इस वर्ष 21 सितंबर को महालया है. हिंदू शास्त्र के अनुसार पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन ही महालया मनायी जाती है. मान्यता के अनुसार, महालया के दिन पितरों की विदाई के साथ पितृपक्ष का समापन होता है और देवी पक्ष की शुरुआत होती है. इस दिन विधि विधान से माता दुर्गा की पूजा अर्चना कर उन्हें अपने घर आगमन के लिए निवेदन किया जाता है. खेतों, मैदानों में खिले कास के फूल, वातावरण में हल्की सिहरन मां जगदंबे के आगमन का संकेत दे रहे हैं.मां के आगोमोनी का उत्सव है महालया
आद्या काली मंदिर कोयला नगर के पुजारी हरिभजन गोस्वामी आगोमनी का उत्सव है महालया. दुर्गा पूजा बेटी के घर वापसी का उत्सव है. दुर्गा सप्तशती में ऋषि मुनियों ने स्तुति की है. स्त्रीयः समस्ताः सकलि जगत्सुर अर्थात जगत में जहां भी नारी की मूर्ति है, वह महामाया का ही जीवंत विग्रह है. इसी को आधार मानते हुए बंगाली समुदाय ने बेटी के घर आने की खुशी को जाहिर करने के लिए आगोमनी गीतों की रचना की. इन्हीं गीतों व श्री दुर्गा सप्तशती के विशिष्ट श्लोकों का संकलन कर ऑल इंडिया रेडियो ने सन 1931 में महिषासुर मर्दिनी कार्यक्रम का प्रसारण शुरू किया, जो महालया के साथ इस प्रकार जुड़ गया कि महालया के प्रातः वीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज में चंडी पाठ सुनना एक परंपरा बन गयी है. हर तरफ देवी के आगमन का संदेश गूंजने लगता है.
महालया के दिन मूर्तिकार बनाते हैं मां की आंखें
महालया के दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा पर रंग चढ़ाया जाता है, उनकी आंखें बनायी जाती हैं. मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले कारीगर अपना काम पहले ही शुरू कर लेते हैं, लेकिन महालया के दिन प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जाता है. पितृपक्ष की तरह ही देवी पक्ष भी 15 दिन का होता है. इसमें 10 दिन नवरात्रि के होते हैं और 15वें दिन लक्ष्मी पूजा के साथ देवी पक्ष समाप्त हो जाता है.
एक रेडियो से पूरा मुहल्ला सुनता था महालया
डॉ गोपाल चटर्जी :
बंगाली समुदाय में महालया के साथ ही दुर्गोत्सव शुरू हो जाता है. महालया के दिन आज भी सुबह जगना आनंदित करता है. आज भी रेडियो पर ही महालया सुनते हैं. वीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज सुनते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है. इसके बाद दुर्गा मंदिर जाकर पितरों को याद करते हैं.श्यामल सेन :
महालया आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. पहले भोर में जग जाता था. खूब पटाखे छोड़ता था. आज भी महालया सुनने भोर में जगता हूं. मंदिर जाकर पूजा करते हैं और पूर्वजों के लिए फूल चढ़ाते हैं. बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज जब महालया के दिन गूंजती है तब एहसास होता है मां आनेवाली हैं.डॉ समीरन बनर्जी :
महालया आने से पहले से मन प्रफुल्लित होने लगता है. वातावरण बदलने लगता है. बचपन में महालया का इंतजार बेसब्री से करता था. तब एक रेडियो से पूरा मुहल्ला महालया सुन लेता था. आज उत्साह सिमटता जा रहा है. मां की पूजा भक्ति भाव से करता हूं.प्रियंका पाल :
महालया के साथ ही हमारा दुर्गोत्सव शुरू हो जाता है. जैसे ही महालया शुरू होता है हम देवी दुर्गा को नमन कर आतिशबाजी करते है. पितरों का तर्पण कर उन्हें विदायी दे भूल-चूक की माफी मांगते हैं. आज भी पूरे परिवार के साथ महालया सुनती हूं. मंदिर जाकर पूजा करती हूं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

