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Dhanbad News : बलियापुर व जामताड़ा के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा राज्य में सबसे अधिक

खनिज संपदा से समृद्ध झारखंड अब एक नयी पर्यावरणीय चुनौती का सामना कर रहा है. राज्य के कई जिलों के भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट और सल्फेट की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ गयी है.

आइआइटी आइएसएम धनबाद के एप्लाइड जियोफिजिक्स विभाग के वैज्ञानिकों की शोध में खुलासा- पलामू, धनबाद, गिरिडीह और जामताड़ा जिले में पेयजल की स्थिति चिंताजनक

– शोध के दौरान पूरे राज्य से 545 नमूनों की हुई जांच

धनबाद.

खनिज संपदा से समृद्ध झारखंड अब एक नयी पर्यावरणीय चुनौती का सामना कर रहा है. राज्य के कई जिलों के भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट और सल्फेट की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ गयी है. इससे पेयजल की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ रहा है. यह खुलासा आइआइटी आइएसएम धनबाद के एप्लाइड जियोफिजिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सोमेन माइती और शोधार्थी सुरभि गुप्ता द्वारा संयुक्त रूप से किये गये शोध में हुआ है. अध्ययन में झारखंड के अलग-अलग इलाकों से भूजल के 545 नमूने लिये गये और उनका विश्लेषण इंटीग्रेटेड वॉटर क्वालिटी इंडेक्स (आइडब्ल्यूक्यूआइ) के आधार पर किया गया. यह राज्य स्तरीय पहला अध्ययन है, जिसमें भूजल की गुणवत्ता का वैज्ञानिक और सांख्यिकीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया गया है.

फ्लोराइड, नाइट्रेट और सल्फेट बने प्रमुख प्रदूषक

शोध में पाया गया कि फ्लोराइड (एफ⁻), नाइट्रेट (एनओ₃⁻) और सल्फेट (एसओ₄²⁻) जैसे रासायनिक तत्व भूजल को सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं. फ्लोराइड का औसत प्रभाव सूचकांक 0.1419, नाइट्रेट का 0.1382 और सल्फेट का 0.1275 दर्ज किया गया है. इन तत्वों की अधिकता से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है. फ्लोरोसिस (हड्डियों और दांतों की कमजोरी) तथा मेटहीमोग्लोबिनेमिया (रक्त में ऑक्सीजन की कमी) जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

भूजल गुणवत्ता के आधार पर जिलों का वर्गीकरण

अध्ययन के अनुसार, झारखंड में लिये गये कुल नमूनों में से 48.1% नमूने उत्कृष्ट (आइडब्ल्यूक्यूआइ < 50), 42.02% अच्छे (आइडब्ल्यूक्यूआइ 50–100), 6.2% मध्यम (आइडब्ल्यूक्यूआइ 100–150), 2.5% खराब (आइडब्ल्यूक्यूआइ 150–200) और 1.1% अत्यंत खराब (आइडब्ल्यूक्यूआइ >200) श्रेणी में पाये गये. इसका अर्थ है कि करीब 3.6% जल स्रोत ऐसे हैं जिनमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है.

सबसे अधिक फ्लोराइड झारखंड के इन जिलों में

-पलामू और गढ़वा जिलों में फ्लोराइड की मात्रा 5-10 मिग्रा/लि.

-रांची, गिरिडीह, बोकारो में 1-3 मिग्रा/लि

-धनबाद, बलियापुर और जामताड़ा क्षेत्रों में 3-18.5 मिग्रा/लि

(ये सभी मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा 1.5 मिग्रा/लि से कई गुना अधिक हैं. इससे स्पष्ट होता है कि झारखंड के कई भू-भाग पेयजल संकट की ओर बढ़ रहे हैं.)

प्राकृतिक और मानवीय कारण दोनों जिम्मेदार

आइआइटी आइएसएम के अनुसार, झारखंड की भू-आकृतिक संरचना में मौजूद क्रिस्टलाइन चट्टानें, कार्बोनेट वेदरिंग और हैलाइट डिसॉल्यूशन फ्लोराइड प्रदूषण के प्रमुख प्राकृतिक कारण हैं. वहीं औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि क्षेत्र में उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग और घरेलू सीवेज का रिसाव भूजल को और अधिक दूषित बना रहे हैं. मुख्य रासायनिक प्रक्रियाओं में जिप्सम और इवैपोरेट डिसॉल्यूशन, कार्बोनेट वेदरिंग तथा हैलाइट डिसॉल्यूशन को प्रमुख रूप से पाया गया.

कैल्शियम और हार्डनेस कर रहे हैं प्रभावित

संवेदनशीलता विश्लेषण में पाया गया कि कैल्शियम, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी और टोटल हार्डनेस जैसे तत्व भूजल की गुणवत्ता को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं. इन तत्वों के असंतुलन से पानी की कठोरता बढ़ती है और भूजल की पेय योग्यता घट जाती है.

आइडब्ल्यूक्यूआइ पद्धति से पहली बार व्यापक मूल्यांकन

आइआइटी आइएसएम के वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में पारंपरिक डब्ल्यूक्यूआइ (वाटर क्वालिटी इंडेक्स) की जगह आइडब्ल्यूक्यूआइ (इंटिग्रेटेड वाटर क्वालिटी इंडेक्स) पद्धति का उपयोग किया गया है. यह तकनीक विशेषज्ञ राय और सांख्यिकीय ‘एंट्रॉपी वेटिंग’ दोनों को मिलाकर पानी की गुणवत्ता का अधिक वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण प्रस्तुत करती है. इसके जरिये राज्य के विभिन्न हिस्सों में भूजल की स्थिति का जोनवार नक्शा तैयार किया गया.

राज्य में जल प्रबंधन नीति की जरूरत

रिसर्च के अनुसार, यह अध्ययन झारखंड में सतत जल प्रबंधन नीति बनाने की दिशा में अहम कदम साबित हो सकता है. यदि समय रहते भूजल की निगरानी और डिफ्लोरिडेशन (फ्लोराइड हटाने) के उपाय नहीं किये गये, तो आने वाले वर्षों में पेयजल संकट और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गहरा सकते हैं. शोध में पाया गया कि राज्य के अधिकांश जलस्रोत अभी सुरक्षित हैं. कुछ क्षेत्रों में ही प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. यदि इस दिशा में समय पर कदम नहीं उठाये गये, तो आने वाले वर्षों में झारखंड को स्वच्छ पेयजल की गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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