पूर्व डिप्टी मेयर व कांग्रेस नेता नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या मामले की सुनवाई गुरुवार को जिला व सत्र न्यायाधीश दुर्गेश चंद्र अवस्थी की अदालत में हुई. इस मामले में पूर्व विधायक संजीव सिंह की ओर से बहस के पांचवें दिन दलील देते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एमए नियाजी ने कहा कि नीरज हत्याकांड की जांच सरकार की दो एजेंसी सीआइडी व लोकल पुलिस ने की. वहीं तीन अनुसंधानकर्ता इसके अनुसंधान में लगे थे. बावजूद इसके सभी महत्वपूर्ण तथ्य अदालत से जान बूझकर छुपा लिये गये. ऐसा इसलिए किया गया की पूरी कहानी को अपने तरीके से बनाना था और संजीव सिंह को फंसाना था. अधिवक्ता नियाजी ने दलील देते हुए कहा कि घटना की सबसे पहले जांच सराढेला के थाना प्रभारी अरविंद कुमार ने शुरू की थी. इन्होंने 26 तारीख तक अनुसंधान किया था. उसके बाद चिरकुंडा के थाना प्रभारी निरंजन कुमार तिवारी को अनुसंधानकर्ता बना दिया गया. एक साथ दो अनुसंधानकर्ता अनुसंधान कर रहे थे. पुनः उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के आदेश पर एसआइटी का गठन कर दिया गया था. इसका नेतृत्व एडीजी सीआइडी अजय कुमार सिंह कर रहे थे. बावजूद इन सब के सीआइडी के किसी भी अधिकारी को चार्जशीट का गवाह नहीं बनाया गया. कई महत्वपूर्ण तथ्यों को अदालत से छुपा लिया गया. जबकि सीआईडी ने संदिग्धों के स्कैच भी जारी किये थे. आरोप पत्र में संजीव सिंह को कहीं भी घटनास्थल पर नहीं बताया गया. बल्कि षड्यंत्रकारी बताया गया. किस आधार पर पुलिस ने अभियुक्तों के संस्वीकृति बयान को आरोप पत्र में लिखा, जबकि किसी भी गवाह ने न तो पुलिस के समक्ष और न अदालत में वैसा बयान दिया जो अनुसंधानकर्ता ने चार्जशीट में लिखा है. अदालत ने बचाव पक्ष को बहस करने के लिए पुनः आठ अगस्त की तारीख निर्धारित की है.
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