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देश भर के लजीज व्यंजनों का लीजिए यहां लुत्फ

धनबाद : आजीविका सरस मेला में भारत के विभिन्न राज्यों के स्टॉल लगाये गये हैं. महिला उद्यमियों का उत्साह देखने लायक है. उनका कहना है इस बड़े मंच से हमें काफी उम्मीद है. हम यहां से अच्छी आय लेकर जायेंगे. झारखंड की नदिया और जल स्त्रोत के नाम पर पंडाल बनाये गये है. (कोनार, दामोदर, […]

धनबाद : आजीविका सरस मेला में भारत के विभिन्न राज्यों के स्टॉल लगाये गये हैं. महिला उद्यमियों का उत्साह देखने लायक है. उनका कहना है इस बड़े मंच से हमें काफी उम्मीद है. हम यहां से अच्छी आय लेकर जायेंगे. झारखंड की नदिया और जल स्त्रोत के नाम पर पंडाल बनाये गये है. (कोनार, दामोदर, बराकर, स्वर्ण रेखा, मैथन और पारस नाथ पहाड़).
इन पंडालों में सजे स्टॉल में कहीं से आचार की खुशबू तो कहीं से मसाला और पाचक का सुगंध दर्शकों को अपनी और खींच रहा है. हैंड मेड बैग, चप्पल, होम डेकोरेटिव आइटम भी लुभा रहे हैं. दुर्गा पूजा को देखते हुए भी खरीदारी की जा रही है. हर वर्ग के लिए यहां आइटम उलब्ध है. मेला में घुसने के साथ बायीं तरफ लगे इंडियन फूड कोर्ट में हर प्रांत के लजीज व्यंजन के स्टॉल हैं.
आपणो राजस्थान के स्टाॅल पर वहां का प्रसिद्ध दाल-बाटी, चूरमा और बीकानेरी जलेबी सबको खूब भा रही है. जयपुर की भेलपुरी और मावा कुल्फी खाना नहीं भूलना है. ओड़िशा के स्टाॅल पर वहां का फेमस डिश छेनापड़ का लुत्फ उठाया जा रहा है. हैदराबाद का चिकम दम बिरयानी की खुशबू भी लोगों को स्टॉल पर बुला रही है. पंजाब का छोला-भटूरे, झारखंड साहेबगंज की महिलाओं ने कचौड़ी, समोसा से स्टॉल
सजाया है.
बच्चों ने की मस्ती : संडे बच्चों के लिए फन डे बना. पैरेंट्स के साथ मेला पहुंचकर बच्चों ने खूब मस्ती की. मनपसंद खरीदारी के साथ ही बच्चों ने किड्स वोट को एंजाय किया. जंपिंग डांस और मिक्की माउस के साथ खेलकर बच्चे खूब आनंदित हुए.
तांत की साड़ियों की वेरायटी है उपलब्ध : वर्दमान से आयी शिवानी साहा तांत की साड़ियों की वैरायटी लायी हैं. उन्होने बताया पूजा नजदीक है और बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा बड़ी और खास होती है. तांत की साड़ी खूब पसंद की जाती है. हमारे पास सिंपल तांत की सूती साड़ी है. ढाकाई जामदानी, तांत बनारसी के अलावा और भी साड़ियां हैं. तांत साड़ी की मांग हो रही है.
स्टॉल में पैला भी है : पहले के जमाने में अनाज नापने के लिए पैला का इस्तेमाल किया जाता है. आज की पीढ़ी को शायद ही यह मालूम हो की पैला किसे कहते हैं. गिरिडीह से आयी तारा मल्हार पहाड़िया के स्टॉल पर हर साइज का पैला उपलब्ध है. इन्होंने बताया कि कांसा को फ्रेम में ढाल कर हम खुद से पैला बनाते हैं. आजकल पैला बहुत कम व्यवहार में लाया जाता है.

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