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बेटे को बचाने रेलवे ट्रैक पर दौड़ी मां, दोनों की ट्रेन से कटकर मौत
पंचेत : रेल पटरी पर दौड़ रहे मानसिक रूप से बीमार पुत्र को बचाने के क्रम में शनिवार की सुबह मां व बेटे दोनों की मौत हो गयी. घटना ग्रैंड कॉर्ड सेक्शन पर कालूबथान व प्रधानखंटा स्टेशनों के बीच हुई. दोनों आसनसोल-वाराणसी पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आ गये. घटना के बाद पंचेत ओपी क्षेत्र […]
पंचेत : रेल पटरी पर दौड़ रहे मानसिक रूप से बीमार पुत्र को बचाने के क्रम में शनिवार की सुबह मां व बेटे दोनों की मौत हो गयी. घटना ग्रैंड कॉर्ड सेक्शन पर कालूबथान व प्रधानखंटा स्टेशनों के बीच हुई. दोनों आसनसोल-वाराणसी पैसेंजर ट्रेन की चपेट में आ गये. घटना के बाद पंचेत ओपी क्षेत्र के खैरकियारी में शोक की लहर दौड़ पड़ी. धनबाद जीआरपी ने दोनों शवों का पंचनामा बना पोस्टमार्टम के लिए धनबाद भेज दिया.
मृतकों में खैरकियारी निवासी स्व. दशरथ गोप की पत्नी आशा गोप (48) व उसका मानसिक रूप से बीमार पुत्र निताई गोप (22) थे. आशा अपने बेटे निताई व अपनी पुत्री भाग्यवती गोप के साथ कुछ दिनों से अपने मायका बलियापुर थाना क्षेत्र के कारीटांड़ में रह रही थी. वह मजदूरी कर पुत्र व पुत्री का भरन-पोषण करती थी.
आज सुबह निताई गांव से निकलकर रेलवे ट्रैक पर दौड़ने लगा. उसे रोकने के लिए उसकी मां पीछे-पीछे दौड़ पड़ी. इसी बीच आसनसोल-वाराणसी पैसेंजर ट्रेन ने दोनों को अपनी चपेट में ले लिया. ट्रेन के चालक ने घटना की जानकारी प्रधानखंता स्टेशन को दी. धनबाद जीआरपी ने क्षत-विक्षत दोनों शवों को धनबाद भेजा. जानकारी मिलने पर खैरकियारी व कारीटांड़ के लोग घटनास्थल पर पहुंच गये.
अनाथ हो गयी पुत्री: निताई गोप पंचेत के डीवीसी उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद धनबाद की एक दवा दुकान में काम करता था. काफी मेहनत कर मां-बेटा परिवार चला रहे थे. इधर कुछ माह से वह मानसिक रूप से बीमार हो गया. उसका इलाज उसके मामा के घर से ही कराया जा रहा था. मौत के बाद भाग्यवती बार-बार अचेत हो रही थी.
मामा व अन्य परिजन उसे ढाढ़स बंधा रहे थे. 12 वर्ष पहले वर्ष 2006 में दशरथ गोप की मौत अवैध उत्खनन के दौरान गांगटीकुली खान में हो गयी थी. जिला प्रशासन उसका शव बाहर नहीं निकाल सका. मृतक के परिवार को आज तक मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है. घटनास्थल को लेकर झारखंड व पश्चिम बंगाल में काफी विवाद हुआ था.
मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिलने के कारण परिजन को कोई सरकारी लाभ नहीं मिला. हादसे के बाद खैरकियारी के करीब एक दर्जन लोगों का पता नहीं चला. तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन भी घटनास्थल पर पहुंचे थे. उन्होंने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला.
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