सारवां. प्रखंड क्षेत्र के वनवरिया इस्टेट में 350 वर्षों से राजशाही परिवार की ओर से शारदीय नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा की पूजा हो रही है. इस संबंध में इस्टेट के वंशज गौतम नारायण सिंह ने बताया कि पूर्व के वंशज रूपनारायण सिंह की ओर से यहां वेदी स्थापित कर पूजा आरंभ की गयी थी. उस समय इस्टेट की तहसील बारह कोस की थी. इस्टेट के लगान से प्राप्त होने वाले पैसे से ही पूजा-अर्चना होती थी. जिस परंपरा को उनके वंशज रामनारायण सिंह, लालमोहन सिंह के द्वारा निर्वहन किया गया. सरकार द्वारा जमींदारी छीन लिये जाने के बाद इस्टेट परिवार को पूजा का भार उठाना पड़ता है. कहा कि मां की यहां अद्भुत कृपा बरसती है. आसपास के क्षेत्र के लोग इन्हें गढ़ माता के नाम से पुकारते हैं. उन्होंने बताया कि मेरे वंशजों की ओर से आदिशक्ति की आराधना आश्विन माह श्रीसमृद्धि की कामना को लेकर नौ दिनों तक की थी. मां ने उनकी सेवा व भक्ति से प्रसन्न होकर मेरे पूर्वज रूपनारायण सिंह के साथ इस्टेट में श्रीसमृद्धि प्रदान की थी. महाष्टमी के दिन मां गौरी की विशेष पूजा के दौरान क्षेत्र के सभी घरों से डाली चढ़ाकर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं. नवमी को राजपरिवार की परंपरा के अनुसार बलि प्रदान की जाती है. जबकि दशमी को माता के प्रतिमा का विसर्जन गढ़ के तालाब में किया जाता है. वहीं, वनवरिया ग्रामीण युवा समिति की ओर से रंगारंग आयोजन किया जाता है. मौके पर राजपरिवार के वंशज रामचंद सिंह, उदय सिंह, पंचानंद सिंह, जाह्नवी सिंह, बासकी सिंह, बजरंगबली सिंह, बम सिंह, जनता सिंह, दयानंद सिंह, टिपू सिंह आदि दायित्व का निर्वहण किया जाता है. हाइलाइर्ट्स : महाष्टमी व नवमी के अवसर पर दर्शन को पहुंचते हैं श्रद्धालु
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