मधुपुर. आमतौर पर लोग मानते हैं कि मारवाड़ी समाज में जन्म के बाद अधिकांश लोग लाभ-हानि का हिसाब रखने और धन संपत्ति बनाने में अपना बहुमूल्य जीवन बिता देते हैं, लेकिन इससे इतर मारवाड़ी समाज के एक बाल ब्रह्मचारी बाबा ने सारी मान्यताओं को तोड़ दिया. श्री श्री 108 बाल ब्रह्मचारी बाबा भगवान दास जी भूखमारिया (खंडेलवाल) का जन्म 1889 ई. में गिरिडीह (तब जिला हजारीबाग) में हुआ था. इनके पिता का नाम स्वर्गीय छोटेलाल जी खंडेलवाल था. छोटेलाल जी की चार संतान थी. जिसमें इनका स्थान तीसरा था. वे बचपन से ही भगवान के प्रति अनन्य आस्था रखते थे. जब कालक्रम में उनके विवाह की चर्चा चली तब इन्होंने वैराग्य धारण कर लिया. व्रत, संकल्प लिया कि जीवन पर्यंत भिक्षाटन कर जीवन यापन करेंगे. सांसारिक जीवन से मुक्ति पाने के लिए इन्होंने कठिन तपस्या की. मधुपुर में एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया. इसके लिए मधुपुर निवासी भोला कोयरी से एक जमीन ले लिया. जमीन पर मंदिर, संस्कृत विद्यालय, औषधालय, पुस्तकालय निर्माण करने का व्रत लिया. तालाब के बीचोंबीच मंदिर निर्माण कर भगवान श्री अमरनाथ की लिंग स्थापना किया. 108 कुंडीय यज्ञ ब्राह्मणों द्वारा कराया. फिर जीवन पर्यंत अन्न का परित्याग कर दिया. कंदमूल, फल-फूल खाते हुए भिक्षाटन के लिए नगर-नगर निकल पड़े. गिरिडीह, मधुपुर, देवघर, कोलकाता, हजारीबाग आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए मुद्रा संग्रह किया. पूरी निष्ठा से मंदिर निर्माण कार्य में लग गये. मंदिर निर्माण के बाद यह चारों धाम की तीर्थ यात्रा करते अमरनाथ पहुंचे. वहां भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किए और भगवान का शिवलिंग मधुपुर लाये और इसकी स्थापना किया, लेकिन इससे उनके मन को पूर्ण शांति नहीं मिली. अमर कैलाश त्रिपुरधाम मधुपुर के विद्वान पुजारी पंडित कौशलेश मिश्रा बताते हैं बाल ब्रह्मचारी बाबा भगवान दास जी मां की शांति के लिए राजस्थान के मऊ गये. वहां पौने दो वर्ष तक रहकर उन्होंने लक्ष्मी नारायण भगवान जी की दो जोड़ी मूर्ति बनवायी. भगवान लक्ष्मी नारायण की एक जोड़ी मूर्ति मधुपुर अमर कैलाश मंदिर में स्थापित किया. वहीं, दूसरी मूर्ति कलकत्ता के बड़ा बाजार सत्यनारायण मंदिर में स्थापित हुई. धीरे-धीरे जीवन की सांझ उनके जीवन में भी उतर आया. इन्होंने अनुभव किया कि मंदिर समाज को समर्पित कर देना चाहिए. मंदिर की देखभाल के लिए समाज के लोगों की बैठक बुलाकर एक व्यवस्था करने का आग्रह किया. तब कोलकाता के समाजसेवी भक्त स्वर्गीय ब्रह्मदत्त झुनझुनवाला ने मंदिर संचालन का दायित्व स्वयं ले लिया. कालांतर में मंदिर परिसर में ही श्री राणी सती दादी जी का मंदिर निर्माण कराया गया. 13 नवंबर 1979 बदी नौवमी को श्री राणी सती दादी जी के मंदिर में मूर्ति स्थापना हुई. बाल ब्रह्मचारी बाबा भगवान दास जी अस्वस्थ हो जाने के उपरांत 90 वर्ष की आयु में कलकत्ता में 22 अक्टूबर 1979 को बैकुंठ सिधार गये. हाइलार्ट्स : बाल ब्रह्मचारी बाबा भगवान दास जी भूखमारिया का जन्म 1889 ई. में गिरिडीह में हुआ था
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