अवर न्यायाधीश प्रथम की अदालत में चल रहा है मामला
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कोर्ट में प्रतिवादी हाजिर, मांगा समय
अवर न्यायाधीश प्रथम की अदालत में चल रहा है मामला कोर्ट में अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी देवघर : सरदार पंडा गद्दी प्रकरण में डिक्रीधारी अजीतानंद ओझा की ओर से दाखिल टाइटिल एक्सक्यूशन केस नंबर 7/2017 में उतरकारी प्रथम पक्ष स्टेट ऑफ झारखंड की ओर से देवघर उपायुक्त उपस्थित हुए. उपायुक्त की ओर से […]
कोर्ट में अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी
देवघर : सरदार पंडा गद्दी प्रकरण में डिक्रीधारी अजीतानंद ओझा की ओर से दाखिल टाइटिल एक्सक्यूशन केस नंबर 7/2017 में उतरकारी प्रथम पक्ष स्टेट ऑफ झारखंड की ओर से देवघर उपायुक्त उपस्थित हुए. उपायुक्त की ओर से अधिकृत राजकीय अधिवक्ता बालेश्वर प्रसाद सिंह ने न्यायालय में उपस्थिति दर्ज कराते हुए समय आवेदन दिया. साथ ही कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए समय की याचना की जिसे स्वीकृत कर लिया गया. उपायुक्त की ओर से इस मामले में 27 अप्रैल को पक्ष रखा जायेगा. इस मामले में अन्य उतरकारी हाजिर नहीं हुए हैं. मामला उतरकारियों की उपस्थिति के लिए पूर्व से निर्धारित है.
क्या है सरदार पंडा गद्दी ताजपोशी प्रकरण
बाबा बैद्यनाथ मंदिर में सरदार पंडा गद्दी की ताजपोशी प्रकरण को लेकर मामला 22 फरवरी, 2017 को सबजज एक अजय कुमार सिंह की अदालत में दाखिल किया गया है. डिक्रीधारी अजीतानंद ओझा ने न्यायालय की डिक्री को तामिला करने के लिए यह वाद लाया है जिसमें झारखंड सरकार द्वारा डीसी देवघर, विशेष पदाधिकारी झारखंड राज्य धार्मिक न्यास ट्रस्ट, बाबा बैद्यनाथ बासुकीनाथ श्राइन एरिया डेवलपमेंट ऑथरिटी समेत अन्य को रेसपोंनडेंट (प्रतिवादी) बनाया गया है.
इसमें डिक्रीधारी ने याचना की है कि एडीजे चार की अदालत द्वारा 7 दिसंबर 2016 को टाइटिल अपील संख्या 27/2013 में आदेश व 21 दिसंबर 2016 को डिक्री दी जा चुकी है, लेकिन न्यायालय के आदेश के बाद भी आदेश का तामिला प्रतिवादियों ने नहीं किया है. डिक्रीधारक के मामले की सुनवाई के बाद स्वीकृत कर लिया गया व प्रतिवादियों को हाजिर होने के लिए नोटिस भेजी गयी. यह वाद सीपीसी की धारा 13 के तहत दाखिल की गयी है.
कब से चला आ रहा है वाद: सरदार पंडा गद्दी प्रकरण वर्ष 1970 से चला आ रहा है. अंतिम सरदार पंडा भवप्रीतानंद ओझा थे जिनके नावल्द दिवंगत हो जाने के बाद यह मामला न्यायालय में टाइटिल सूट संख्या 64/1970 अजीतानंद ओझा की ओर से दाखिल किया गया. इस मामले में पक्षकार कानूनी प्रक्रियाओं में करीब 46 तक उलझते रहे. अंतत: वादी के पक्ष में कोर्ट का फैसला अाया.
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