दरअसल मुखिया इन दिनों पंचायत के विकास के साथ-साथ अपने पंचायत में गौरा चौक से गौरा-अचाटो रोड का पेटी पर ठेकेदारी भी कर रहे हैं.
माओवादी का विशेष नजर इसी करोड़ों रुपये के काम पर है. माओवादी ने इसमें 15 फीसदी लेवी मांगी है. मुखिया राजकिशोर के साथ माओवादी व नक्सली की धमकी का यह पहला मामला नहीं है. बताया जाता है कि तीन वर्ष पूर्व भी मुखिया समेत इस क्षेत्र में रोड का काम कराने वाले ठेकेदारों से फोन पर ऐसी लेवी मांगी गयी थी. उस दौरान एसपी को सूचना दिये जाने के बाद पुलिस के संरक्षण में काम पूरा हुआ था.
इस धमकी के बाद से ही मुखिया राजकिशोर यादव भी शाम ढलते ही पंचायत छोड़ देते हैं. राजकिशोर का अपना पैतृक गांव गौरा है. लेकिन रात में राजकिशोर यादव गांव में नहीं रुकते हैं. दोपहर में पंचायत क्षेत्र से अंधेरा छाने से पहले देवघर शहर लौट आते हैं. मुखिया देवघर स्थित अपने मकान में रहते हैं. यही स्थिति बिहार सीमा से सटे मोहनपुर प्रखंड के अन्य पंचायत में भी है. बीचगढ़ा पंचायत के मुखिया बिंदा देवी के पति सुकदेव महतो की हत्या के बाद उनका परिवार भी अपराधियों के भय से शाम होने से गांव छोड़ देते हैं. पुलिस भी अंधेरे में इस क्षेत्र में पेट्रोलिंग करने से परहेज करती है.