देवघर: करीब नौ दशक पुरानी संस्था हिंदी विद्यापीठ का फलक काफी बड़ा है. देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद जैसे विभूति संस्था के आजीवन कुलाधिपति रहे. समय-समय पर कई महान हस्तियों का मार्गदर्शन मिलने के साथ-साथ उनका आगमन भी हिंदी विद्यापीठ देवघर में हुआ.
झारखंड सरकार द्वारा डिग्रियों को रद्द किये जाने के फैसले के बाद हिंदी विद्यापीठ का क्रियाकलाप सुर्खियों में आ गया. इसकी तफ्तीश करने पर लोगों ने भी कई स्तर पर भिन्नता भी गिनायी.
मसलन हिंदी विद्यापीठ देवघर द्वारा प्रवेशिका, साहित्य भूषण, साहित्यालंकार, सेतु की परीक्षा आयोजित की जाती है. परीक्षा में 80 से 90 फीसदी अंक छात्र-छात्रएं हासिल करते हैं. लेकिन, उपरोक्त पाठय़क्रम की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए कोई कॉलेज की व्यवस्था नहीं है. सीबीएसइ, आइसीएसइ अथवा स्टेट बोर्ड के छात्र पूरे वर्ष कठिन मेहनत करके भी इतना अंक हासिल नहीं कर पाते हैं. जितना अंक बगैर पढ़ाई किये विद्यापीठ के विद्यार्थी अंक हासिल करते हैं. इसका सीधा लाभ लोग नौकरी अथवा प्रोन्नति में लेते हैं. नौकरी एवं प्रोन्नति का यही आधार मेधावी लोगों को आगे बढ़ने से भी रोकता है.

