साधारण तौर पर ध्यानकर्ता मन के संदर्भ में प्रत्याहार को साधना चाहता है. वह कुछ शारीरिक, इंद्रिय और मानसिक हलचलों को बार-बार दुहराकर शरीर व मस्तिष्क को थकाने के बाद इस अवस्था को प्राप्त कर सकता है. वह किसी दृश्य वस्तु को लगातार देखकर उस पर अपने मन को एकाग्र कर सकता है अथवा किसी मंत्र, श्लोक या प्रार्थना को बार-बार दुहराता है. इस समूची प्रक्रिया के दौरान चेतना वस्तु अथवा ध्वनि पर केंद्रित रहती है. प्रत्याहार के बाद साधक मन को किसी आंतरिक प्रतीक पर एकाग्र करता है और धारणा का अभ्यास करता है. यह प्रतीक कोई विचार, अनुभूति अथवा दिव्य पुरुष का चित्र हो सकता है. हमें आश्चर्य होता है कि किस उद्देश्य से विभिन्न धर्मों तथा संस्कृतियों के लोग चेतना को अपनी इंद्रियों से मुक्त कर किसी वस्तु, विचार या अनुभूति पर केंद्रित करना चाहते थे. वह कौन सा विचार अथवा उद्देश्य था जिससे प्रेरित होकर छोटे-बड़े समूहों में लोग स्वयं को संसार के व्यवधानों से अलग कर चेतना को अंतर्मुखी करते थे.
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प्रवचन:::: ध्यान के दौरान मन को एकाग्र करें
साधारण तौर पर ध्यानकर्ता मन के संदर्भ में प्रत्याहार को साधना चाहता है. वह कुछ शारीरिक, इंद्रिय और मानसिक हलचलों को बार-बार दुहराकर शरीर व मस्तिष्क को थकाने के बाद इस अवस्था को प्राप्त कर सकता है. वह किसी दृश्य वस्तु को लगातार देखकर उस पर अपने मन को एकाग्र कर सकता है अथवा किसी […]
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