सुशील कुमार भारती
जी हां, 2061 साल पुराना है बैद्यनाथ मंदिर के ऊपर स्थापित स्वर्ण कलश. इस रहस्य का पहली बार उद्घाटन किया है दुमका के पुरातत्ववेत्ता पंडित अनूप कुमार वाजपेयी ने. उनकी पुस्तक ‘विश्व की प्राचीनतम सभ्यता’ में इस रहस्य का खुलासा किया गया है.
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अपनी खोज के आधार पर पंडित वाजपेयी ने इस पुस्तक में बताया है कि बैद्यनाथ मंदिर के ऊपर जो स्वर्ण कलश है, उसे बनवाकर 2061 साल पूर्व श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी यानी नाग पंचमी के दिन स्थापित किया गया था.
इससे संबंधित तथ्य इस कलश पर अंकित हैं. पंडित वाजपेयी ने इससे संबंधित अन्य बातों का भी उल्लेख किया है. उन्होंने कहा कि कलश पर अंकित तथ्यों से जानकारी मिलती है कि प्राचीन ‘अंग क्षेत्र’ (जिसके भाग झारखंड और बिहार में हैं) में नाग देवता की पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है.
पुस्तक में पुरातात्विक आधारों पर और भी बहुत से तथ्यों का रहस्योद्घाटन किया गया है, जिनसे बहुत से मिथक टूटते हैं. पंडित वाजपेयी कहते हैं कि बैद्यनाथ मंदिर पर अंकित पंक्तियां पूरे विश्व में प्राप्त संस्कृत भाषा के सभी शिलालेखों-अभिलेखों से प्राचीन है.
उनके अनुसार, संस्कृत भाषा का प्राचीनतम अभिलेख भारत के जूनागढ़ में पाया गया है, जो इतिहास में दर्ज है. यह अभिलेख 151 इस्वी का है. रुद्रदमन के नाम से चर्चित यह अभिलेख ब्राह्मणी लिपि में है, जबकि बैद्यनाथ मंदिर का यह अभिलेख 43 ईसा पूर्व का है, जिसकी भाषा संस्कृत और लिपि है देवनागरी. यह अभिलेख संस्कृत में शोध का एक नया द्वार खोलता है.
पंडित वाजपेयी कहते हैं कि बैद्यनाथ मंदिर पर जब इस कलश की स्थापना हुई थी, तब पृथ्वी के एक बड़े हिस्से पर सम्राट विक्रमादित्य का शासन था, जिसके नाम पर विक्रम संवत् आरंभ हुआ. पंडित वाजपेयी यह भी कहते हैं कि बैद्यनाथ मंदिर विश्व के सभी शिव मंदिरों से प्राचीन है, मगर इतिहासकारों की दृष्टि से इस मंदिर से संबंधित पुरातात्विक साक्ष्य दूर रहे.
उनके अनुसार, इस बात के भी पुरातात्विक साक्ष्य हैं कि बैद्यनाथ मंदिर का अस्तित्व तब भी था, जब हड़प्पा सभ्यता विकसित थी, जिसका खुलासा वे अपनी अगली पुस्तक में करेंगे. साथ ही कहा कि नाग पूजा की परंपरा सबसे पहले प्राचीन अङ्ग जनपद में शुरू हुई थी.