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चुनावी रंग नहीं चढ़ा परवान, आयोग की सख्ती, नहीं दिख रहे हैं पोस्टर-बैनर
सतीश-विवेक चतरा/पलामू : झारखंड में पहले चरण के चुनाव का काउंट डाउन चालू है. पलामू, चतरा और लोहरदगा मे चुनाव के अब केवल आठ दिन ही शेष हैं. 29 अप्रैल को इन तीनों सीटों पर मतदान होना है. लेकिन, लोकसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी रंग अब तक परवान चढ़ा नहीं दिख रहा है. पिछले […]
सतीश-विवेक
चतरा/पलामू : झारखंड में पहले चरण के चुनाव का काउंट डाउन चालू है. पलामू, चतरा और लोहरदगा मे चुनाव के अब केवल आठ दिन ही शेष हैं. 29 अप्रैल को इन तीनों सीटों पर मतदान होना है. लेकिन, लोकसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी रंग अब तक परवान चढ़ा नहीं दिख रहा है. पिछले चुनावों की तरह इस चुनाव में पोस्टर, बैनर और दीवार लेखन नहीं हो रहा है. छतों पर राजनीतिक दलों के झंडे लहराते नजर नहीं आ रहे हैं. इक्का–दुक्का घरों पर ही पार्टियों के झंडे दिखायी देते हैं.
दीवार लेखन नहीं के बराबर है. अपवादों को छोड कर रांची से लोहरदगा, चंदवा, लातेहार, मनिका और सतबरवा होते हुए डालटेनगंज तक के रास्ते में पार्टियों के पोस्टर, बैनर और झंडे नदारद हैं. मुख्य सडक छोड कर गांव जाने पर प्रत्याशियों के प्रचार वाहन नजर आ जाते हैं. प्रचार वाहन स्थानीय बोली में गीतों की पैरोडी के जरिये वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन गांवों में भी प्रत्याशियों के पक्ष में पोस्टर, बैनर और दीवार लेखन नहीं दिखता है.
राजनीतिक दलों के चुनावी कार्यालयों में ही पार्टी और प्रत्याशी के पोस्टर, बैनर नजर आते हैं. हां, गांवों में कुछ घरों की छत पर विभिन्न राजनीतिक दलों का झंडा दिख जाता है.चंदवा मेन रोड में दूबे जी के मकान में कांग्रेस का चुनावी कार्यालय है. प्रचार में आ रही परेशानियों के बारे में पूछने पर एक कार्यकर्ता दिनेश साहु कहते हैं कि इस बार काफी मुश्किल हो रही है.
चुनाव आयोग सभी पोस्टर और बैनर का हिसाब मांग रहा है. दीवार लेखन के लिए भी आयोग ने संंपत्ति के मालिक का सहमति पत्र मांगा है. लोग देने को तैयार नहीं होते. ऐसे में घूम कर ही जनसंपर्क चल रहा है. लातेहार बाइपास रोड पर भाजपा के चुनावी कार्यालय में गरमा–गरमी है. कई कार्यकर्ता वहां बैठ कर सुस्ता रहे थे. प्रचार के बारे में पूछने पर नवीन मिश्र नाम के युवक ने कहा कि प्रचार करने में खूब पसीना निकल रहा है.
कार्यकर्ता क्षे़त्र में प्रचार के लिए सुबह से रात तक दौड रहे हैं. पोस्टर और बैनर का इस्तेमाल काफी सीमित हो गया है. हम लोगों को तो थोडी कम परेशानी हो रही है. निर्दलीय उम्मीदवारों का हाल बुरा है. उनको तो अपना चुनाव चिन्ह जनता को बताना भी मुश्किल हो गया है. थोड़ा आगे निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र साहु का चुनाव कार्यालय है. वह भी प्रचार में आ रही दिक्कतों से परेशान हैं.
आयोग की कड़ाई प्रचार का तरीका बदल रहे हैं प्रत्याशी
पोस्टर, बैनर और दीवार लेखन पर चुनाव आयोग की कड़ी नजर है. राज्य के अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी डॉ मनीश रंजन बताते हैं : चुनाव आयोग प्रत्याशियों द्वारा किये जा रहे खर्च की कड़ी निगरानी कर रहा है.
प्रचार पर किये जा रहे खर्च की जांच करने के लिए अलग से व्यय पर्यवेक्षक नियुक्त किये गये हैं. पोस्टर, बैनर या पंपलेट पर निवेदक के साथ छापने वाले का नाम भी अंकित करना अनिवार्य किया गया है. इस वजह से कोई भी व्यक्ति खर्च के संबंध में झूठ नहीं बोल सकता है. पोस्टर लगाने या दीवार लेखन के लिए भी आयोग के सख्त निर्देश हैं. बिना मकान मालिक की लिखित अनुमति के न तो पोस्टर लगाया जा सकता है और ना ही दीवार लेखन किया जा सकता है.
राजनीतिक दलों के झंडे या पोस्टर घरों पर लगाने के लिए भी घर के मालिक की लिखित स्वीकृति अनिवार्य है. सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति का चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इसके अलावा सोशल मीडिया पर किये जा रहे प्रचार को भी चुनाव खर्च से जोड़ कर देखा जा रहा है. इन सभी कारणों से ही इस बार चुनाव मे गत चुनावों की अपेक्षा पोस्टर, बैनर और दीवार लेखन कम नजर आ रहे हैं.
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